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हम लड़ेंगे साथी

hum laDenge sathi

अनुवाद : चमनलाल

पाश

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हम लड़ेंगे साथी

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    हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

    हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

    हम चुनेंगे साथी, ज़िंदगी के टुकड़े

    हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर

    हल की लीकें अब भी बनती हैं, चीख़ती धरती पर

    यह काम हमारा नहीं बनता, सवाल नाचता है

    सवाल के कंधों पर चढ़कर

    हम लड़ेंगे साथी

    क़त्ल हुई जज़्बात की क़सम खाकर

    बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर

    हाथों पर पड़ी गाँठों की क़सम खाकर

    हम लड़ेंगे साथी

    हम लड़ेंगे तब तक

    कि बीरू बकरिहा जब तक

    बकरियों का पेशाब पीता है

    खिल हुए सरसों के फूलों को

    बीजने वाले जब तक ख़ुद नहीं सूँघते

    कि सूजी आँखों वाली

    गाँव की अध्यापिका का पति जब तक

    जंग से लौट नहीं आता

    जब तक पुलिस के सिपाही

    अपने ही भाइयों का गला दबाने के लिए विवश हैं

    कि बाबू दफ़्तरों के

    जब तक रक्त से अक्षर लिखते हैं...

    हम लड़ेंगे जब तक

    दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है...

    जब बंदूक़ हुई, तब तलवार होगी

    जब तलवार हुई, लड़ने की लगन होगी

    लड़ने का ढंग हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी

    और हम लड़ेंगे साथी...

    हम लड़ेंगे

    कि लड़ने के बग़ैर कुछ भी नहीं मिलता

    हम लड़ेंगे

    कि अभी तक लड़े क्यों नहीं

    हम लड़ेंगे

    अपनी सज़ा क़बूलने के लिए

    लड़ते हुए मर जाने वालों

    की याद ज़िंदा रखने के लिए

    हम लड़ेंगे साथी...

    स्रोत :
    • पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 110)
    • संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
    • रचनाकार : पाश
    • प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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