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प्रेम और अस्तित्व

prem aur astitv

उत्कर्ष पांडेय

अन्य

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उत्कर्ष पांडेय

प्रेम और अस्तित्व

उत्कर्ष पांडेय

और अधिकउत्कर्ष पांडेय

    अँधेरों में डूबे इस अस्तित्व के सागर में,

    जहाँ हर लहर सवाल है,

    और हर किनारा अस्थिर—

    प्रेम एक दीपशिखा बन आता है।

    यह कोई उत्तर नहीं,

    ही समाधान का भ्रम,

    यह तो एक साझा मौन है,

    जो जीवन के शोर में राहत देता है।

    जब अस्तित्व का भार झुकाता है कंधों को,

    प्रेम उन खुरदरे हाथों को थाम लेता है।

    यह कहता नहीं, 'मैं हूँ',

    बल्कि महसूस करता है, 'हम हैं।'

    प्रेम दिशा है, मंज़िल,

    यह बस एक राह है,

    जहाँ अकेलेपन का अंधकार

    साथ के उजाले में घुल जाता है।

    तो क्या प्रेम भी अस्तित्व की ही तरह

    एक सवाल है?

    या शायद,

    यह उन सवालों के बीच

    एक पल की शांति?

    प्रेम, अस्तित्व की इस गहराई में,

    हमारे होने का साक्ष्य बनता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उत्कर्ष पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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