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प्रेम अपनी निडरता में

prem apni niDarta mein

वियोगिनी ठाकुर

अन्य

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वियोगिनी ठाकुर

प्रेम अपनी निडरता में

वियोगिनी ठाकुर

और अधिकवियोगिनी ठाकुर

    प्रेम अपनी निडरता में सबसे सुंदर है

    यही कहा था तुमसे

    कि सबसे सुंदर तब

    जब उसमें किसी को खोने का भय हो

    मैं उस भय से कभी भरी हूँ नहीं प्रिय!

    बस इस बात से काँपता रहा कलेजा

    कि हर बीतते क्षण के साथ

    मैं दूर हो रही हूँ तुमसे

    मेरे अंदर इस बात की कितनी तड़प रही

    कि मुझे समय कितना कम मिला है

    तुम्हारा हाथ थामे रह सकने का

    जबकि मैं इस दुनिया में तुम्हारे लिए आई

    समय से लड़ाई भी तो तुम्हारे लिए रही

    नहीं तो वह मेरा शत्रु कभी नहीं रहा

    हम आपस में मित्र कभी नहीं थे

    पर मैंने उसे उससे तुम्हारे लिए माँगा

    तुमने नहीं देखी है वह नदी

    जो इन आँखों से होकर बही है

    ही वह रास्ता

    जो मुझसे होकर सीधा तुम जाता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वियोगिनी ठाकुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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