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प्रस्तुत

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नेमिचंद्र जैन

अन्य

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नेमिचंद्र जैन

प्रस्तुत

नेमिचंद्र जैन

और अधिकनेमिचंद्र जैन

    आओ

    अब कोई भय नहीं

    असमंजस नहीं।

    दीपमाला लगी तैयार है

    आरती का थाल सज चुका

    है बड़ी धूमधाम अब

    तुम्हारे प्रतीक्षित आगमन की

    अब तो

    तुम्हारी अजन्मी सुंदरता ही

    हमारी आकांक्षाओं के प्यालों में

    भरी है छलछल

    तुम्हारी अपरिचित पावनता

    बंदनवारों-सी बँधी है हमारे द्वार-द्वार

    तुम्हारी अपरिमित उदारता की

    लगी है गली-गली हाट जगमगाती हुई।

    विश्वास करो

    हमने सारा विवेक

    कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान

    नई लाल मिट्टी-सा

    तुम्हारे पथ में बिछाया है

    रंग-बिरंगी झंडियाँ लटकाने को

    सपने ऐंठकर रस्सियाँ बट ली हैं

    करुणा के घटों को बंद कर

    हमने उन पर

    नारियल ढँक दिए हैं

    तुम्हारे मार्ग में

    मंगल-चिह्नों के रूप में रखने के लिए...

    हमने पहचान लिया है

    आज की आस्थाएँ तुच्छ हैं

    इसीलिए हमने अपने ही पैरों से

    उनकी छायाओं के वक्षस्थल

    कुचलकर

    अपने अदम्य उत्साह के आघात

    उस पर अंकित कर दिए हैं...

    अब और कोई कमी नहीं

    विश्वास करो

    अब और कोई संशय नहीं

    कोई डर नहीं

    किसी दुविधा का द्वंद्व का।

    आओ

    हम आज अपने अस्तित्व को मिटाकर

    सर्वथा विसर्जित कर

    तुम्हारे ही एकांत स्वागत में

    पूरी तरह प्रस्तुत हैं

    तत्पर हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : अचानक हम फिर (पृष्ठ 183)
    • रचनाकार : नेमिचंद्र जैन
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1999

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