प्रहार

prahar

प्रतिभा कटियार

उसे मालूम था कि

वो स्त्री है दुनिया की सबसे मज़बूत स्त्री

जो है उसके प्रेम में

इसलिए उसने

सारे निर्मम प्रहार किए उस पर ही

जब मैं तुम्हे पुकारना चाहता हूँ

जब मैं तुम्हें पुकारना चाहता हूँ

मैं उठकर पानी पीता हूँ

खिड़की से दिखने वाली सड़क को

देर तक देखता रहता हूँ

सड़क, यूँ लगातार घूरे जाने से उकताकर करवट लेती है

और मैं आसमान देखने लगता हूँ

ख़ाली आसमान

उस ख़ाली आसमान में

मैं गले में रुकी अपनी पुकार लिखना चाहता हूँ

तुम्हारा नाम

गले की नसों से रगड़ते हुए तुम्हारा नाम

शायद छलनी हो रहा था

कि मुझे तुम्हारा सीत्कार सुनाई देता है

मैं फिर से पानी पीता हूँ तुम्हारे नाम को

गले की पकड़ से आज़ाद करता हूँ

मैं तुम्हें छूना चाहता हूँ

तुम्हारे दुपट्टे की किनारी पर लटकते घुँघरुओं को

हथेलियों पे रखना चाहता हूँ

तुम्हारी पलकों पर अपने ख़्वाब रखना चाहता हूँ

लेकिन मैं तुम्हें छुए बग़ैर लौट आता हूँ

क्योंकि मैं तुम्हें छूने की अपनी इच्छा को

सहेजना चाहता हूँ

तुम्हारी आवाज़ को सुनने की ख़ातिर

मैं जंगलों में भटकता हूँ

बारिशों से मनुहार करता हूँ

घुघूती, बुलबुल और मैना से कहता हूँ

वो सुनें तुम्हारी आवाज़

और मुझे सुनाएँ

कि मैं एक फ़ोन भी कर सकता था

लेकिन मैं उस आवाज़ की तपिश को

किस तरह अपने कानों में सहेज सकूँगा

सोचकर फ़ोन हाथ में घुमाता रहता हूँ

चाय पीता हूँ और

तुम्हारे साथ के बारे में सोचता हूँ

मैं सोचता हूँ प्रिये कि एक रोज़

चाँदनी रात में जब तुम

अपनी कलाई में टिक टिक करती सुइयों को अनसुना करके

अपने 'अकेलेपन' से उलझ रही होगी

एक ख़याल बनकर मैं तुम्हारी तन्हाई को तोड़ दूँगा

तुम्हारा समूचा अकेलापन तुमसे छीन लूँगा

और तुम्हारे साथ हम दोनों के होने का जश्न मनाऊँगा

लेकिन उसके बाद के छूटे वीराने को सोचकर

सहम जाता हूँ

रोक लेता हूँ उस ख़याल को

जो तुम्हारे अकेलेपन में सेंध लगाने को व्याकुल है

कि अपना अकेलापन तुमने हिम्मत से कमाया है

मैं लौटना चाहता हूँ तुम्हारे ख़याल की दुनिया से दूर

कि करने को बहुत काम हैं

कई महीनों के बिल पड़े हैं जमा करने को

गाड़ी की सर्विसिंग

कितनी अनदेखी फ़िल्में, दोस्तों की पेंडिंग कॉल्स

जवाब के इंतज़ार में पड़ी मेल्स

घरवालों के उलाहने

कि लौटते क़दमों को तेज़ी से बढ़ाता हूँ

ख़ुद से कहता हूँ

कि मैं तुम्हारा कोई नहीं और तुम मेरी कोई नहीं,

तभी अंदर एक नदी फूटती है

बाहर फूलों का मौसम खिलखिलाता है

मैं इस नदी को बचाऊँगा

धरती पर फूलों के मौसम को बचाऊँगा।

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रतिभा कटियार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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