प्रदक्षिणा है यह

pradakshaina hai ye

शिरीष ढोबले

शिरीष ढोबले

प्रदक्षिणा है यह

शिरीष ढोबले

रोचक तथ्य

इस कविता के लिए कवयित्री को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

 

एक

शिवलिंग की
देहरी है यह
अरण्य
पृथ्वी की देह पर
उभरी हुई
देहरी
मन्वंतरों की याचना के बाद

यह अरण्य!

दो 

एक विलक्षण रेखा है
पृथ्वी के गर्भ और
आकाश के आर-पार

यात्राएँ हैं जो तुम्हारी
आत्मा ने अपनी अनंत
योनियों में की हैं पार
और तुम्हारी देह
जिनका उठाती रही भार

प्रदक्षिणा है यह

तीन

जब ज़ंग लगा वह तीर
रक्त के अतल में तैरती
उस सुवर्ण मुद्रा-सी चमकती
कोशा के आर-पार बिंध जाए
निश्चल रहना
संभव है तुम
निष्प्राण गिर पड़ो
देहरी के बाहर
या यह कि सधे पैर
लाँघ जाओ उसे,
प्रदक्षिणा है यह

चार

कोई भी संख्या हो सकती है
कोई भी संख्या
एक या एक सहस्र
पत्ते की नोक पर
लिया या दिया जा सकता है
सृष्टि का कलश
सृष्टि और पत्ते कभी-कभी
पहचाने नहीं जाते अलग
सावधान होकर इसीलिए
पत्तों से ढँकी देह का अपनी
करना होगा संकल्प
प्रदक्षिणा है यह

पाँच 

निर्जन है
निस्पंद नहीं है
अरण्य है
तो आखेट तो होगा ही!
पैरों के नीचे तुम्हारे
तुम्हारा ही बिंब है
अगले क़दम पर कौन
होगा तुम्हारे साथ!
इसलिए अरण्य है
तो आखेट तो
होगा ही!

छह

उच्चारण स्पष्ट होने से ही
स्वप्न में कौंधेगा मार्ग
मार्ग होने से ही
होता है मार्ग
अस्पष्ट उच्चारण से
खिन्न हो जाते हैं देवता
छोड़ जाते हैं संग

संग छूटने से ही
छूट जाता है संग
सहेजकर वाणी
सहेजी नहीं जाती

सात

दिशाओं के झुलसे पत्तो पर
पैर देकर चलना होगा
दृष्टि छोड़ देनी होगी
शाखाओं पर
जिसके परे है ऊर्ध्वमूल अंधकार वृक्ष
अपने हिस्से का लेकर
अधंकार अंजलि में
करनी होगी पार

प्रदक्षिणा है यह

आठ 

देह पर पड़ते घावों पर
केवल इच्छाओं का लेप होगा
कोटरों से रिसते पानी में
सर्पविष का स्पर्श
सहज नहीं हो पाता निश्चय
कहाँ से आरंभ है
देह का मान
कहाँ अपमान है उसका

देह पर पड़ते घावों पर
केवल सर्पविष का स्पर्श होगा

नौ

फूल पाखरू एक
अपने उड़ने में स्थिर
फूल एक
अपने होने में विलीन
संकोच के शर से बिंधी हुई
सुगंध
अपने न होने में मगन
दृष्टि
प्रश्न नहीं है,
प्रदक्षिणा है यह

दस

यही
प्रमाद है
यही 
दुख है
यही 
इच्छा
यही 
प्रसाद है
सृष्टि का सारा बाँधना
खुल गया है शायद
जहाँ कोई है वह जलमग्न है स्थान
वहाँ कोई और हो तब रेगिस्तान
प्रदक्षिणा है यह

स्रोत :
  • पुस्तक : उर्वर प्रदेश (पृष्ठ 178)
  • संपादक : अन्विता अब्बी
  • रचनाकार : शिरीष ढोबले
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2010

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY