Font by Mehr Nastaliq Web

चक्रचालि

chakrchali

रमानन्द रेणु

अन्य

अन्य

रमानन्द रेणु

चक्रचालि

रमानन्द रेणु

और अधिकरमानन्द रेणु

    अनुभवक गंगासँ धोअल अछि आकाश

    आचरणक लेहूसँ गाढ़ कारी कालिन्दी

    पटुताक पोखरिसँ उठैत छैक भोरक भाफ

    जे पसरल अकड़ि कऽ

    बनि कऽ से शेषनाग

    किन्तु,

    तैयो

    दुर्वासाक बोलीमे ललकारि रहल ब्रह्माकेँ

    की थिक औचित्यक आश्लेश?

    वा अहं केर नहि आक्रोश?

    वर्गवादी पूँजी

    अर्थवादी सत्ता

    सबतरिसँ निछक्का

    सुरेबगर आकृति दिस आकुल व्याकुल।

    चिकरैत साइरन अद्धि कहियासँ ने कहैत!

    चेत की तैयो भेल?

    ज्यामितिक दृष्टिसँ समस्याक सिद्धि हो

    विकल्पक व्याकरण बनिञो कऽ की केलक अछि?

    रहस्यक

    खुट्टीसँ

    टाङल

    जबरन

    गणित मेघ

    मणित लोक

    अगणित नर मुण्ड-काय

    कारण अवस्थामे

    सभ खन जे बाधक छल,

    बाझल अणु ताग-ताग

    साटल हो पात-पात

    किन्तु, उद्भ्रान्तिक आयोग नहि समेटल क्यो?

    अनवरत तृष्णाक तेखुरसँ तानल

    अभाव गन्ध

    हीन स्वर

    साध्यमे प्रपंच बल

    कौशलक दिशा सूचि नहि आबो कनिञो गड़ल?

    विकृति विकासवाद!

    स्वीकृत विनाशकाल

    ताबत घरि जाबत हम फूकि दैत रहल छी,

    अन्यथाक आबामे हम पैसि जे रहल छी,

    समष्टि

    प्रलय बाढ़िमे भसय,

    की अछि ने पसिन्न?

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 95)
    • संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
    • रचनाकार : रमानन्द रेणु
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, बिहार
    • संस्करण : 1971

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए