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बारिश के बीचोंबीच की ऊब

barish ke bichombich ki ub

अमित नाथ

अन्य

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अमित नाथ

बारिश के बीचोंबीच की ऊब

अमित नाथ

और अधिकअमित नाथ

    बारिश के बीचोंबीच का समय अंदर की ओर घूमता है

    ठुड्डियों के गाभिन होने को तोड़-फोड़ कर दोपहर उड़ जाती है

    मुँह फुलाई शाम की ओर...

    झर जाते हैं आम के बौर अफ़सोस के कालखण्ड से

    पैदा होती है रंग-बिरंगी परियों की बैंगनी उछाल

    इस समय नीम की पीली पत्तियाँ भी मोहक भ्रम पैदा करती हैं।

    इस ऊब पर हल्के पैरों से गुज़रते ही

    दिखती है फ्रॉक पहने एक बच्ची

    जिसकी अथक चहलक़दमियों से झरते हैं

    रुई के फाहे

    अक्सर दो दिव्य अनार जैसे खिल उठते हैं

    इस ऊब के बीच के हिस्से

    हॉर्न, पावरोटी, धूम्रपान, चहकते पंछी, बम्बइया सिनेमा,

    परीक्षाएँ— सभी तुच्छ लगते हैं इन दिनों।

    पर लड़का सोचता है कब वह बनेगा

    एक मेहनती मधुमक्खी

    बारिश के बीच का यह अंतराल

    किसी किसी के अकेले मन को छू जाता है

    यह ऊब बताती है इस साल आम की फसल

    अच्छी होगी।

    बारिश के बीचोंबीच की ऊब में कहीं छुपा है फागुन

    —फागुन के बीज!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अधुनांतिक बांग्ला कविता (पृष्ठ 108)
    • संपादक : समीर रायचौधुरी, ओम निश्चल
    • रचनाकार : अमित नाथ
    • प्रकाशन : परमेश्वरी प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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