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दो बूँदें

do bunden

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

अन्य

अन्य

और अधिकज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

    जंगलों में आग लगी थी—

    लेकिन वे

    उनके हाथ उनके गलों पर गुँथ रहे थे

    गुलाबों के गुच्छों की तरह

    लोग बंकरों की ओर भाग रहे थे—

    वह कहता रहा उसकी पत्नी के जो बाल हैं

    उनकी गहराइयों में छिपा जा सकता था

    एक ही कंबल में दुबके

    वे बुदबुदाते रहे बेशर्म शब्द

    प्रेमियों वाली शब्दावली

    हाल ज़्यादा बिगड़ते ही

    वे एक दूसरे की आँखों में कूद जाते

    और उन्हें ज़ोर से मीच लेते

    इतनी ज़ोर से कि बरौनियों तक रही

    लपटों को भी वे महसूस नहीं कर रहे थे

    वे अंत तक अडिग रहे

    वे अंत तक एकनिष्ठ रहे

    वे अंत तक वैसे ही रहे

    दो बूँदों की तरह

    ठहरे एक चेहरे के किनारे

    स्रोत :
    • पुस्तक : अन्तःकरण का आयतन (पृष्ठ 3)
    • संपादक : रेनाता चेकाल्स्का और अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक आग्नयेष्का कूच्क्येविच-फ़्राश और कुँवर नारायण)
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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