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नज़्म की तलाश

nazm ki talash

दर्शन बुट्टर

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दर्शन बुट्टर

नज़्म की तलाश

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और अधिकदर्शन बुट्टर

     

    जिज्ञासा

    वह नज़्म कौन-सी गुरुदेव! 
    जो ज़ह्न से फूटते लावे में भी 
    फूल बन कर खिले

    कोई-कोई नज़्म 
    चढ़ जाती नशे की तरह 
    नशा उतरता 
    तो सिर में विस्फोट होते

    कोई-कोई नज़्म 
    जहाज़-सी गरजती लाँघ जाती 
    मेरे सिर पर गिरते रहते 
    फटी हवा के तुंबे

    कोई-कोई नज़्म 
    बर्फ़ तले भी सुलगती 
    मैं नन्हीं-सी बूँद 
    ठंडा न कर सकती हर्फ़ों के अंगार को

    मुझे तो चाहिए नज़्म 
    घास पर पड़ी ओस जैसी 
    घोंसले में चहकती सुख शांति जैसी 
    दस्तक जैसी...ख़त जैसी

    मुझे तो चाहिए नज़्म 
    मकई के दूधिया दानों जैसी
    बारिश में खेलते बच्चों जैसी 
    चौपाल की शोभा ज्ञानियों जैसी

    हाँ, चाहिए नज़्म 
    जो धो दे सारी कालिख 
    खोल दे सारे पिंजरे 
    रंग दे सारी पतझड़

    वह नज़्म कौन-सी गुरुदेव! 
    जो कसैली जीभ 
    पर मिश्री की डली बन टिक जाए...


    गुरुदेव

    हे सखी! 
    कालजयी नहीं होती 
    किसी भी युग की कोई कविता

    हम जो इस पल में हैं 
    और होंगे अगले पल में 
    हर्फ़ों के अब के अर्थ 
    बदल जाएँगे अगले ही पल

    जितने कण कायनात के 
    उतनी दिशाएँ मन की 
    उतने ही अर्थ नज़्मों के

    किसी एक पल को कस के न पकड़ 
    किसी एक राह की आराधना न कर 
    किसी एक नज़्म से मोह न पाल

    सफ़र का धर्म है चलना 
    आवाज़ का कर्म हरकत देना 
    हर्फ़ों का धर्म राह खोलना 
    नज़्में तो महज़ पगचिह्न होती हैं

    हर हर्फ़ की अलग तासीर 
    हर राह का अपना रंग 
    तू सिर्फ़ रंगों की तासीर पहचान 
    बराबर की नज़्म 
    तलाश करेगी तुझे ख़ुद ही

    हर्फ़ों के जंगल में 
    संदल भी बबूल भी 
    रूह की अबाबील 
    टहनियाँ बदलती रहती 
    नज़्म बदलती रहती जिल्दों को

    हे सखी! 
    एड़ियाँ न कूँच सफ़र के अधबीच 
    कहीं धुल न जाएँ बेहतरीन नज़्में...

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाकंपन (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : दर्शन बुट्टर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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