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नौ दिसंबर

nau disambar

अनीता वर्मा

अन्य

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अनीता वर्मा

नौ दिसंबर

अनीता वर्मा

और अधिकअनीता वर्मा

    रोचक तथ्य

    कवयित्री ने यह कविता हिंदी के समादृत कवि मंगलेश डबराल (1948-2020) की स्मृति में संभव की।

    अभी तुम्हें गए चंद साल ही हुए हैं

    कुछ भी नहीं बदला

    सिवाय उस हरी रोशनी के

    जो तुम्हारे नाम के आगे जलती थी

    वह समा गई है घास की सरसराहट में

    वहीं से बहता आता है राग दुर्गा का स्वर

    कई संगतकार तुम्हारा पता पूछते आते हैं

    हम कहते हैं तुम निकल गए हो पहाड़ों पर

    किसी कविता की खोज में

    या शायद माँ से मिलने गए हो

    जिनके हाथ की बनी रोटी

    तुमने वर्षों से नहीं खाई

    ली पाई के बग़ीचे की ओस

    भाप बनकर उड़ चुकी है

    और वह स्त्री तुम्हारे इंतज़ार में है

    जिसे तुम अपनी कविताओं में छोड़ गए थे

    गुजरात के मृतक के बयान पर

    अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई

    जाँच संस्थाएँ किन्हीं दूसरे कामों में मसरूफ़ हैं

    न्यायालयों में मज़लूमों की

    मुरझाई शक्लें घूमती हैं

    अब तक तो शायद

    तुमने ढूँढ़ लिए होंगे वे अजन्मे शब्द

    रोशनी की इबारत में

    लिख दी होगी वह कविता

    जिसकी प्रतीक्षा में

    बेचैन थी तुम्हारी आत्मा

    हालाँकि तुम कभी गए नहीं

    हमारे बीच से

    फिर भी सब याद करते हैं

    नौ दिसंबर की तारीख़।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनीता वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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