Font by Mehr Nastaliq Web

काव्यकला?

kavyakla?

चेस्लाव मीलोष

अन्य

अन्य

चेस्लाव मीलोष

काव्यकला?

चेस्लाव मीलोष

और अधिकचेस्लाव मीलोष

    मैं हमेशा एक अधिक खुला शिल्प चाहता रहा हूँ,

    जो ज़्यादा कविता होगा, ज़्यादा गद्य

    और जो संप्रेषण होने देगा किसी को वेध्य बनाए बिना

    लेखक को पाठक को, उच्च कोटि की पीड़ाओं के लिए।

    कविता के तत्व में ही कुछ अशोभन होता है :

    एक चीज़, जिसके बारे में हम नहीं जानते कि

    वह हममें है, हममें उपजती है,

    हम अपनी आँखे मिचकाते हैं, मानो कि हम में से एक शेर कूद गया

    हो और खड़ा हो रोशनी में, अपनी बग़लों को पूँछ से फटकारता हुआ।

    इसलिए यह कहना सही है कि कोई अज्ञात शक्ति कविता लिखवाती

    है, हालाँकि यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि वह निश्चय ही देवदूत है।

    यह समझना कठिन है कि कवियों का अभिमान कहाँ से आता है।

    जबकि अगर उसकी कोई कमज़ोरी दिख जाए तो वे शर्मिंदा होते हैं।

    कौन समझदार आदमी दैत्यों का एक देश होना चाहेगा

    जो उसके अंदर ऐसे शासन करते हैं जैसे वह उनका क्षेत्र हो,

    जो कई भाषाएँ बोलते हैं

    और इस तरह कि जैसे उस के ओंठ और हाथ चुराना काफ़ी हो

    वे अपनी सुविधा के लिए उसकी नियत्ति बदलने की कोशिश करते हैं?

    क्योंकि जो कुछ घिनौना है उसकी इन दिनों बहुत क़ीमत है,

    कोई सोच सकता है, कि मैं मज़ाक़ कर रहा हूँ

    या कि मैंने एक और तरीक़ा गढ़ लिया

    व्यंग्य का उपयोग कर कला की प्रशंसा करने का।

    एक समय था जब सिर्फ़ समझदार पुस्तकें पढ़ी जाती थीं

    जो दु:ख और दुर्भाग्य सहन करने में सहायक थीं।

    लेकिन यह वैसा नहीं है जैसे कि एक हज़ार कृतियों का

    सीधे उपजना मनोचिकित्सा निदानशालाओं से।

    आख़िरकार दुनिया अलग है उससे जो हमें लगता है

    और हम अलग हैं अपने प्रलापों से।

    इसलिए लोग बरतते हैं चुपचाप ईमानदारी,

    और इस तरह रिश्तेदारों और पड़ोसियों का आदर अर्जित करते हैं।

    कविता का एक उपयोग यह है कि वह हमें याद दिलाती है

    कि कितना कठिन है वही व्यक्ति बने रहना,

    क्योंकि हमारा घर खुला है, दरवाज़े में कोई चाबी नहीं,

    और अदृश्य अतिथि अपनी मरज़ी से आते-जाते हैं।

    जो मैं कह रहा हूँ, मानता हूँ कविता नहीं है

    क्योंकि कविताएँ कम ही और झिझकते हुए लिखने दी जाती हैं

    असह्य लाचारी में, और सिर्फ़ इस उम्मीद से,

    कि मंगलकारी शक्तियाँ, अशुभ नहीं, हमारा औज़ार की तरह उपयोग करें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 91)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक अशोक वाजपेयी, रेनाता चेकाल्स्का
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए