भावनात्मक असमर्थता का प्रदेश

bhawanatmak asmarthata ka pardesh

अनुराग अनंत

अनुराग अनंत

भावनात्मक असमर्थता का प्रदेश

अनुराग अनंत

ऐसा कभी नहीं हुआ कि

स्वप्न देखने के बाद आँखें छिली हों

ऐसा भी नहीं कि

स्मृतियों से लौट आया हूँ सही-सलामत

पीले रंग को सिर्फ़ पीला नहीं कह सका कभी

पेड़ को सिर्फ़ पेड़ कहने का अपराध कभी नहीं किया

शब्द किसी वस्तु या घटना का अर्थ नहीं बताते

उसका एक चित्र भर खींचते हैं

हम सबके अर्थ अलग हैं

मसलन पीले रंग का अर्थ मेरे लिए

तुम्हारा पहली बार मिलना था

और पेड़ को देखते ही मुझे उस दुपहर की याद आती है

जिसके बाद कभी शाम नहीं आई

भाषा में इतना सामर्थ्य कभी नहीं रहा

कि वह हमारे यथार्थ को सही-सही

या पूरा-पूरा व्यक्त कर सके

भाषा हमारी भावनात्मक असमर्थताओं का प्रदेश है

जहाँ शब्द नागरिक अपनी नियति पर रोते हैं

सबसे पवित्र भाव को कभी किसी भाषा की आवश्यकता नहीं रही

रोने के लिए किसी भाषा की आवश्यकता नहीं

प्रेम भाषा का मोहताज नहीं

भूख का रंग भाषा के दर्पण में देखा जाए ज़रूरी नहीं

श्रेष्ठ कविताएँ भी भाषा के बाहर ही कहीं निवास करती हैं

और वे जो कभी नहीं कर सके स्वयं को व्यक्त

सबसे बड़े कवि हैं

जैसे मेरी अनपढ़ माँ

खेत में काम करता किसान

मेरे जूते सिलने वाला मोची

इनकी आँखों में झाँकते हुए मैंने जाना

भाषा भावनात्मक असमर्थताओं का प्रदेश है

जहाँ शब्द नागरिक अपनी नियति पर रोते हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनुराग अनंत
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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