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कमरे के बारे में

kamre ke bare mein

शुन्तारो तानीकावा

अन्य

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शुन्तारो तानीकावा

कमरे के बारे में

शुन्तारो तानीकावा

और अधिकशुन्तारो तानीकावा

    आदमी ने स्वयं को घेर लिया

    व्योम बेहद डरावना था

    काल बेहद उदास

    तब उसने सुरक्षित महसूस किया

    अनंत व्योम की जगह वहाँ थीं विशुद्ध सफ़ेद दीवारें

    अनंत काल की जगह मुलायम बिस्तर

    तब भी ज़रूरत थी खिड़की-दरवाज़ों की

    दरवाज़े जिगरी दोस्तों की ख़ातिर

    खिड़कयाँ गर्मियों के ख़ूबसूरत सूर्य के लिए

    दिन में बाहर नीला आकाश है और मेघों की दीवारें

    मैदानों और सड़कों का बिस्तर

    हालाँकि रात में आदमी ने स्वयं को भीतर बंद कर लिया

    'प्रिय कमरा' बुदबुदाते रहे हैं मनुष्य हमेशा से

    आकाश ने ईमानदारी से आदमी का क़रीबी रिश्ता बनाया

    बसंत ग्रीष्म शरद और सर्दियों से अचानक मृत्यु के दिन तक

    मैं कुछ नहीं जानता उस आदमी के बारे में

    लेकिन उसके बग़ैर यह कमरा

    धीरे-धीरे लगने लगता है ब्रह्माण्ड-सा

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 309)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : शुन्तारो तानीकावा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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