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फाँसें

phansen

अनुवाद : हेमन्त जोशी

लुई आरागों

अन्य

अन्य

लुई आरागों

फाँसें

लुई आरागों

और अधिकलुई आरागों

    (1)

    रोक दे कराहना कि कुछ होगा

    इससे अधिक अजीब

    कि कराहता हो कोई

    और वह रोता हो

    (2)

    मैं घूमता हूँ

    अपने भीतर साए का ख़ंजर लिए

    मैं घूमता हूँ

    अपनी यादों में एक बिल्ली लिए

    मैं घूमता हूँ

    मुरझाए फूलों का गुलदस्ता लिए

    मैं घूमता हूँ

    तार-तार हुए कपड़े पहन

    मैं घूमता हूँ

    अपने दिल में बड़ा-सा घाव लिए

    (3)

    यक़ीन करें मुझ पर

    सबसे बुरी बात है यह

    कि सोचता है कोई

    (4)

    जितनी छोटी हो कविता

    उतना ही ज़्यादा बसेगी मन में

    (5)

    इस कविता को खदेड़ देना होगा शहर से बाहर

    जगह नहीं है इस शहर में

    उदासी के इस नमूने के लिए

    (6)

    हमने सब कुछ लिया उनके लिए जिनका घुटता था दम

    सब कुछ किया उनके लिए जो माँगते थे हवा

    रात पर बनाई खिड़कियाँ

    खुली रहतीं जो अस्पताल भर

    इन शिकायतों के शोर से रहें दूर चलो

    (7)

    एक मुस्कुराहट से नहीं सुंदर कुछ भी

    और बदसूरत चेहरे के बावजूद

    तुझे चिंता क्यों नहीं सुंदर होने की

    (8)

    ले जाओ कहीं और यह घायल पाँव

    (9)

    जैसे तुम्हारे पास कारण था निगाहें फेर लेने का

    उसकी ओर से जो है रक्त-रंजित

    (10)

    सब कुछ ठीक-ठीक है अपनी जगह

    या कम से कम सब कुछ वहाँ है तो

    (11)

    झूठे

    धो ले अपने फैले हुए हाथ

    (12)

    जो कहता है मुझे तकलीफ़ है

    भूल जाता है दूसरों को

    (13)

    काफ़ी नहीं है चुप हो जाना

    जानना होगा दूसरी बातें कहना

    (14)

    अभिशप्त है वह पौधा

    आँख जिस पर टिके नहीं

    क्या अधिकार उस कवि को

    रहने का जो कभी खिले नहीं

    (15)

    नहीं है यह—

    कि थोड़ा-सा—

    मत बनाओ चेहरे

    रोते हुए जिन्हें कोई—

    केवल अपराध है—

    (16)

    मैं बोलता हूँ इस तरह उनके लिए सो नहीं पाते जो

    अकेले नहीं पड़ते वह गर मैं उन्हें पकड़े हूँ

    मैं बोलता हूँ इस तरह उनके लिए मरने में कष्ट पाते जो

    फिर क्यों कहते हो कि मुझ में है अहंकार

    (17)

    जीवन है फाँसों से भरा

    फिर भी जीवन है वह

    (18)

    और यह अच्छा ही होता है

    रात कभी-कभी रो लें अगर

    (19)

    एक बार फिर आईना और तू

    वहाँ हैं मेरे मरे हुए बच्चों की आँखें

    (20)

    क्या तुझे शर्म का मालूम है नाम

    (21)

    करें कोशिश रखने की हिंदी की कविता में

    ख़ंजर-सा यह शब्द साक़ियत-सीदी-युसुफ़

    (ऐशार्द के कुछ अंश, लेज़ादिय से) 1982

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 418)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : लुई आरागों
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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