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अधूरे प्रेमपत्र

adhure prempatr

रवि प्रकाश

रवि प्रकाश

अधूरे प्रेमपत्र

रवि प्रकाश

 

एक

मुझे बताया गया
कि सब कुछ ख़त्म हो गया है
ये चलते-चलते बीच रास्ते की बात है
इससे पहले मैं इस बात में यक़ीन रखता था
कि कुछ भी ख़त्म नहीं होता
मैं टूटी-बिखरी आस्थाओं के पास खड़ा था
जब पृथ्वी प्रेम के लिए छोटी हो रही थी
जब पृथ्वी उम्मीद के लिए छोटी हो रही थी
लेकिन जब भी सीने पर हाथ रखता था
पसलियों के नीचे एक संगीत बजता रहता था
हृदय था कि धड़कता ही रहता था

दो

मैंने चुपचाप एक हहराते हुए सागर को
पार कर लिया है
मैंने वह नाव पकड़ी थी
जो कहीं भी जा सकती थी
मैंने चुपचाप प्रेमपत्रों को जला दिया है
जो अख़बारों की तरह पढ़े जा सकते थे
मैंने चुपचाप
अपनी ग़लतियों का तर्क तैयार कर लिया है
मैं प्रश्नों के लिए तैयार खड़ा हूँ
मैं धीमे-धीमे चुपचाप
उसे अपने अंदर से काट रहा हूँ
लेकिन अभी भी मेरे भीतर
वह पहाड़ की तरह खड़ी है
मुझे अपनी उम्र
बहुत छोटी लगती है
मैंने घटनाओं का क्रम
कुछ इस तरह बदला है
कि नायक अपनी मौत मर गया
पाठकों को यह कथा
बहुत ही अरुचिकर लग सकती है

तीन

मैं उस पीढ़ी में पैदा हुआ
जिसे सबसे पहले भाषाओं ने ठगा
फिर संस्कृतियों ने
वह इसके पीछे बदहवास भागता रहा
आख़िरकार अपनी रक्षा नहीं कर सका
प्रेम एक अंधविश्वास की तरह देखा जाने लगा
बंद कमरों की कुलीन हिंसाएँ
सड़कों पर ठठरियों की तरह चलती थीं
उनके पास रोने तक का समय नहीं था
एक भावुक मनुष्य
सबसे कमज़ोर मनुष्य था
दो पाटों में बाँट दिया गया हमें
उसे न कुछ समझना था
न उसे कुछ समझाना था
सब अपने आप में सब कुछ थे
अजीब सदी थी
जहाँ योग संभव नहीं
जहाँ जन्म संभव नहीं
जहां संवाद संभव नहीं

चार

मैंने उसके सामने कोई शर्त नहीं रखी
वह मुझे जीवन देती थी
वह मुझे जीवन दे सकती थी
वह सर्दियों की शुरुआत थी
जब बिस्तर पसीने से भीगकर
शीतल लगते थे
तुमने उसे कभी धूप में नहीं डालने दिया
तुम मेरे पास थी
तुम जानती थी
एक बेचैन मनुष्य की चिंताएँ
मैंने एक धड़कती हुई नस देखी
मुझे अच्छा लग रहा है
यह देखना
कि आँखों से लहू टपकता है

स्रोत :
  • रचनाकार : रवि प्रकाश
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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