पेट की पीड़ा

pet ki piDa

नारायण श्याम

नारायण श्याम

पेट की पीड़ा

नारायण श्याम

जोबनवंती विधवा नारी जोबन से बेख़्वाब,

नर की प्यारी चंचलता हित अंग-अंग बेताब

मसोसती दिल में उसके उन्मादों की भीड़,

लेकिन उसकी पीर से भारी मेरे दिल की पीर!

मंदिर का वह नवल पुजारी यौवन से बेहाल,

मोहक उसके लिए कामिनी और उसकी हर चाल

मन मसोसता दिल में उसके उन्मादों की भीड़,

लेकिन उसकी पीर से भारी मेरे दिल की पीर!

चेहरा ज़रद आह और आँसू सहज यही पहचान,

युवा-हृदय की गहन वेदना यह भी सहज पहचान

पूछे 'श्याम' कि कैसी न्यारी मेरी जीवन-भीड़?

यौवन की भी पीर ऐसी जैसी पेट की पीर!

हलचल इस संसार की सारी यौवन का उन्माद,

बड़े बड़ों को जो मुश्किल है वह यौवन का खेल

उन सबको बेकार बनाती यह है ऐसी पीर,

दुनिया में कोई पीर ऐसी जैसी पेट की पीर!

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 749)
  • रचनाकार : नारायण श्याम
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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