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पेड़

peD

नवीन सागर

ये घने-घने पेड़ कितने सुंदर हैं!

दूर दूर तक फैले हैं धूप में

इनके नीचे इनकी छाया है

इनकी छाया के नीचे धरती है

यहाँ सूरज

धरती को देखने रुका है

और घने-घने पेड़ दूर तक हँसते हुए

धरती को छुपाए हुए हैं।

~•~

पेड़ की छाया अच्छी लगी

धूप से बचने के लिए

तब उसमें खड़ा नहीं था

देख रहा था पेड़ की छाया

जो अच्छी लगी।

उसे दूर से देखता हुआ निकला

तो संसार में उसके होने का सुख मिला

पेड़ की छाया पेड़ के कारण

पेड़ धरती के कारण है।

मैंने देखा धरती को जैसे पहली बार

पेड़ पेड़ की छाया और धरती

जहाँ एक साथ हैं

वहाँ कैसा दृश्य! एक छोटा-सा संसार

धरती की इच्छा

पेड़ का रूप लिए

छाया किए धरती पर

कितनी सुंदर है अभी।

~•~

पेड़ चाहता है

बहुत सारे पेड़ों के बीच का पेड़

होना।

उसने बहुत सारे पेड़ देखे नहीं हैं

वह चारों ओर दूर-दूर तक देखता है

धूप में जलती चट्टानों के दृश्य।

वह आख़िर एक दिन चला

चलता हुआ पेड़ दो दिन दो रात चला

फिर सहसा उसने जंगल देखा

जंगल से सटकर वह

जंगल में खड़ा हुआ देखता है

आया था चलकर जहाँ से

वहाँ भी खड़ा है

देख रहा है दूर-दूर

धूप में जलती चट्टानों के दृश्य

और बहुत सारे पेड़ों के बीच का पेड़

होना चाहता है।

~•~

प्रसन्न पेड़

पत्तियों में चमक रहा है

हवा से खेल रहा है

पत्तियाँ धरती पर गिर रही हैं

पेड़

ख़ूब बरसना चाहता है अभी।

पेड़ के एकदम पास

धूप में खड़ा देख रहा हूँ यह सब

मैं प्रसन्न नहीं हूँ

पर मेरे हाथ में कुल्हाड़ी है

जो पत्तियों की तरह चमक रही है

और प्रसन्न है।

~•~

पेड़ का जीवन ऐसा है

जड़ों से धरती को जकड़कर

एक जगह खड़े रहने का जीवन

उसने नहीं चुना।

उस पर वार होता है

तो

वह खड़ा रह जाता है सन्नाटे में

जाता है जंगल

वह कट-कट कर गिरता है

उसने नहीं चुनी अपनी मृत्यु

वह बचने के लिए कुछ नहीं कर सकता।

मानो किसी दिन वह

दौड़ा

भागते हुओं के पीछे

इसमें बस्ती का पीछा करते हुए जंगल

का दृश्य है

यह नहीं कि पेड़ यह दृश्य जानता नहीं

बल्कि यह कि वह

जानता है तो ऐसा हो भी सकता है कभी।

हो सकता है

पेड़ के बारे में यह सोचना मेरा

ग़लत

पेड़ धीरे-धीरे धरती से जा रहा हो

अंतरिक्ष में कहीं से

धरती को देखता है पेड़ मुझे ऐसा लगेगा

और दूर चिलचिलाते

हम लोग हुए तो हम होंगे

हमारी चीज़ें होंगी

धरती पर।

~•~

मैं कल दोपहर

जिस पेड़ के नीचे सोया था

वह मिल नहीं रहा है।

सड़क है

सामने की पीली इमारत है

बिजली के खंबे हैं

पेड़ नहीं है।

वह मुझे ही नहीं उन

चिड़ियों को भी नहीं मिल रहा है

जो देख रही हैं कि सड़क है

लोग हैं

लोगों की चीज़ें हैं।

मैं कल जब सोया था

इस पेड़ के नीचे

चिड़ियाँ पेड़ पर गाना गा रही थीं

वह आख़िरी गाना।

पेड़ का मिलना

दुखी चिड़ियों की समझ में नहीं आया

मैंने जाते-जाते देखा घूम के उन्हें

वे आख़िरी उड़ान की तरह

मुझे देखती जा रही हैं।

~•~

होंगे तो सोचते पेड़ भी ज़रूर कुछ

थके-थके खड़े हुए

देख-देख पौंधों को

दूर-दूर तक वत्सल आँखों से।

क्यों होंगे सोचते!

जबकि है पता उन्हें

क्या है हम सोचते नित उनके बारे में।

पेड़ खड़े चाहते होंगे क्या

लौट के जड़ों में

मिट्टी में लौट के बिला जाना!

शोकमग्न पेड़ अगर एक दिन

समा गए भूमि में

क्या होगा हाय! हाय!

पेड़ नहीं होंगे कुल्हाड़ी के बावजूद

हाय! हाय!

स्रोत :
  • पुस्तक : हर घर से ग़ायब (पृष्ठ 85)
  • रचनाकार : नवीन सागर
  • प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर
  • संस्करण : 2006

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