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पेड़-कटाई की प्रक्रिया

peD katai ki prakriya

अनुवाद : प्रवीण पण्ड्या

हर्षदेव माधव

अन्य

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हर्षदेव माधव

पेड़-कटाई की प्रक्रिया

हर्षदेव माधव

और अधिकहर्षदेव माधव

    वह पेड़ को काटता है

    काटता है नीचे से पत्तों को

    गिराता है पेड़ को/क्षमा करना, काटता है अपनी आत्मा को।

    गानों को, घोंसलों की चहचहाहट को काटता है चुपचाप

    काटता है बेचारे वन को, स्वप्न को, ऋतु के घर को।

    रसाल को, वसंत के कुहूकार को...राक्षस

    मारता है दूध को,

    ख़ून का प्रवाह छूटता है...बहता है एकांत में

    ...हे राम! राम! राम! मौत देता है

    आता है यमराज की तरह, फैल जाता है आग की तरह

    क्रूराक्ष...घाव करता है...पुनरपि घाव करता है।

    पुनरपि क्षत, क्ष...त, त...त...त...करता हुआ करता हुआ

    रुकता है पाप से, सौंदर्य विनाश से...

    रमता है दुर्गति में...रमता है हीनता में...

    शनैः शनैः गिरती है नीचे मनुष्यता...गिरता है

    वृक्षत्व...ब्रह्म का सत्त्व...निष्पाप सर्जन

    हे निषाद! कौन हो तुम? यह तुम हो?

    कैसे, कैसे आख़िर पा ली तुमने प्रतिष्ठा...

    वह आज भी वृक्ष को काटता है...आज भी मारता है-

    अपने को...आज भी जीता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तेरे स्पर्श-स्पर्श में (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : हर्षदेव माधव
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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