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पत्थर, गुलाब, नीम और नींद

patthar, gulab, neem aur neend

प्रदीप्त प्रीत

अन्य

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प्रदीप्त प्रीत

पत्थर, गुलाब, नीम और नींद

प्रदीप्त प्रीत

और अधिकप्रदीप्त प्रीत

    वह बहुत दूर है

    इसलिए मैं हर जगह होना चाहता हूँ

    वह बहुत कठोर है—पत्थरों जैसी

    इसलिए मैं कोमल बनना चाहता हूँ

    ताकि वह मुझे कुचल सके

    वे जो आपके दिल का सुकून हैं

    उन्हें सुकून में देखना कितना सुखद है

    मैंने उसके लिए सुकून चाहा

    इसलिए मैंने उसे सोते हुए देखना चाहा

    बेमतलब की हँसी के ओढ़ने से

    वह कुछ तो छिपाना चाहती है

    पास रहने से सब पता चल जाता है

    सो तितली की तरह दूर निकल जाती है

    पहले वह मुझे ‘गुलाब’ बताती

    कोमल और सुकुमार

    और ख़ुद को ‘नीम’ बताने का प्रयत्न करती

    मैं मुस्कुराने लगता

    अब वह दूसरों से मुझे ‘नीम’ बताती है—

    कड़वा और बेकार

    ख़ुद क्या बन रही है, पता नहीं

    मैं अब भी मुस्कुरा रहा हूँ

    इन दिनों नींद

    एक छोटी उम्र की बच्ची हो गई है

    दिन में सो जाती है

    रात को जगाती है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप्त प्रीत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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