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भारत माँ की ध्वजा

bharat man ki dhwaja

सुब्रह्मण्य भारती

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सुब्रह्मण्य भारती

भारत माँ की ध्वजा

सुब्रह्मण्य भारती

और अधिकसुब्रह्मण्य भारती

    यह बहुमूल्य ध्वजा भारत माँ की है देखो आओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओ॥

    कितना ऊँचा ध्वज-स्तंभ है

    यह वंदे मातरम् लिखित है—

    चमक रहा जो, फ़हर रही किस गति से दृष्टि टिकाओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओं॥1॥

    यह मात्र रेशमी वस्त्र है।

    झंझावातों से त्रस्त है—

    तूफ़ानों से भी अविचल उड़ती है मोद मनाओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओ॥2॥

    यहाँ इंद्र का वज्रायुध है।

    यहाँ तुरक का अर्धचंद्र है—

    वंदे माँ है मध्य, अमित गति का अनुमान लगाओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओ॥3॥

    देखो ध्वजास्तंभ के नीचे

    अद्भुत जन-समूह दृग मीचे

    ये योद्धा कहते तन देकर ध्वज की आन बचाओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओ॥4॥

    पंक्तिबद्ध यह दृश्य मनोहर,

    युद्ध कवच शोभित छाती पर—

    वीर शौर्यमय कितने चित्ताकर्षक हमें बताओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओ॥5॥

    मधुर तमिलभाषी नर योद्धा,

    रक्तिम आँखों वाले क्षत्रिय

    केरल वीर, मातृपद सेवक

    तुळुभाषी, तैलंग युद्धप्रिय॥6॥

    यम को त्रास दिखाने वाले—

    वीर मरहठे, रेड्डी-कन्नड़।

    जिनकी देव प्रशंसा करते—

    वे हिंदी-भाषी योद्धा गण॥7॥

    जब तक धरती, धर्म-युद्ध है,

    हिंदी नारियों में सतीत्व है।

    वे राजपूत अटल जिनकी इस—

    भू पर तब तक अमर कीर्ति है॥8॥

    वीर सिंधुवासी जिनको—

    अभिमान 'पार्थ की भू पर रहते'

    बंगनिवासी जो भूलते—

    माँ की सेवा मरते-मरते॥9॥

    ये सब देखो यहाँ खड़े हैं।

    करके दृढ़ संकल्प अड़े हैं।

    इनकी शक्ति और सबसे पूजित ध्वज की जय गाओ।

    सब मिल करके श्रद्धा और विनय से शीश झुकाओ॥10॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : राष्ट्रीय कविताएँ एवं पांचाली शपथम् (पृष्ठ 56)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक एन. सुंदरम् और विश्वनाथ सिंह 'विश्वासी'
    • प्रकाशन : ग्रंथ सदन प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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