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पत्र-शाख-हीन वृक्ष पर

patr shakh heen wriksh par

सुघोष मिश्र

अन्य

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सुघोष मिश्र

पत्र-शाख-हीन वृक्ष पर

सुघोष मिश्र

और अधिकसुघोष मिश्र

    वह

    एक

    वृक्ष

    का

    अवशेष

    है—

    अपनी संरचना में ऊर्ध्वाकार

    पृथ्वी के वक्ष में बेहयाई से गड़ा हुआ

    वक़्त के साथ बिसरा दिए गए

    क्रूर शासक के अपकीर्ति-स्तंभ-सा उपेक्षित

    वह दर्शनीय नहीं है

    लेकिन मेरी आँखों से उसका दृश्य-अनुबंधन है

    मैं ध्यान से देखता हूँ उसे—

    क्षतिग्रस्त इतिहास के जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में

    ज़ंजीरों से बँधा वह कोई योद्धा है—

    मृत्युदंड से अधिक अपनी पराजय से शोकग्रस्त

    उससे लिपटी जंगली लताओं में आए पीले फूल

    स्त्री-केशों में गुँथे पुष्पाभूषण-से हैं—

    बिखरे हुए प्रेयस के वक्ष पर

    कामातुर पुरुष-अंश-सा वह उत्तेजित है

    नीले वस्त्रों में उस पर छाई प्रेयसी के लिए

    इस दृश्य में गहरे डूबा मैं

    सहसा एक स्त्री-स्वर से चौंक उठता हूँ

    देखता हूँ सड़क किनारे खाट पर पसरी

    —अपने दाएँ हाथ से अपना बायाँ स्तन खुजलाती—

    एक अधेड़ स्त्री को

    वह कहती है : यह जामुन का पेड़ है

    यह फलता था कभी रस-रंग से

    चींटे-चीटियाँ आज भी इसकी जड़ों में हैं

    जबकि अब मधुरता से रिक्त है यह

    तरलता से भी…

    उसकी सूखी आँखें

    मुझमें एक अंतरंग-अमूर्त को स्पर्श कर रही हैं

    सहमकर मुड़ा हूँ मैं

    पाता हूँ ख़ुद को चींटे-चींटियों की क़तार पर खड़ा

    वह क़तार जड़ों की ओर जाना छोड़ मुझ पर चढ़ रही है

    मैं झटकता हूँ पाँव

    अब वृक्ष वह नया बिंब ग्रहण कर चुका है—

    वासना के तंतुओं से लिपटा सूखा हुआ अंतःकरण!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुघोष मिश्र
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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