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भूल जाऊँगा एक दिन

bhool jaunga ek din

प्रकाश मनु

प्रकाश मनु

भूल जाऊँगा एक दिन

प्रकाश मनु

यों ही चलते-चलते मिल गया था कुछ

गेंदा फूल में गेंदा फूल की घरेलू गंध की तरह मुस्कराता

मेरे हाथ पर रखा उसने अपना ऊष्मा-भरा हाथ

और मेरे गाल सुर्ख़ हो गए थे

उसे ज़िंदगी में ज़िंदगी के मानी की तरह सहेजा था मैंने

यों ही चलते-चलते फिर वह खो गया एक दिन

फूल में फूल के नूर की तरह

जो था सबसे बेशकीमती ख़ज़ाना मेरा

यों ही चलते-चलते मिलता गया खोता गया

बहुत कुछ

यहाँ तक कि खो गई मेरी भाषा मेरी ज़ुबान भी

यों ही चलते-चलते गया हूँ ऐसी जगह

जहाँ इतने रास्ते खुलते हैं कि मैं

भूल ही गया अपने घर की राह

यों ही चलते-चलते पहुँच जाऊँगा ऐसी जगह

जहाँ से आगे होगी कोई राह

भूल जाऊँगा 'क कबूतर' वाला वह कायदा

जो सीखा बचपन में

भूल जाऊँगा कविता और कहानियों के ढाई आखर

भूल जाऊँगा किसी से मिलने बतियाने के तौर-तरीक़े

भूल जाऊँगा सभ्यता के भीतरी और बाहरी लिबास

और चलूँगा बस चलता चला जाऊँगा नंग-धड़ंग

किसी शिशु-सरीखा

रास्ते में कोई पूछेगा रोककर, कि तुम्हारा नाम क्या है प्रकाश मनु

और मैं भूल जाऊँगा कि मेरा ही तो नाम है प्रकाश मनु

मैं अचकचाई नज़रों से देखूँगा और आगे चल दूँगा।

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रकाश मनु
  • प्रकाशन : वनमाली कथा,अप्रैल-2024

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