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पतंग

patang

मनोज शर्मा

अन्य

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और अधिकमनोज शर्मा

    म्यूज़ियम में एक पतंग थी

    टँगी पतंग के ठीक नीचे

    उड़ाने वाले राजा का सिंह जैसा नाम

    इतनी ख़ूबसूरती से लिखा था

    कि मुलायम और रेशमी नज़र आता था

    पतंग बनाने वाले के ख़ानदान तक का ब्यौरा था वहाँ

    जैसे कि

    वह इलाक़े का एक ही मुसलमान परिवार था, जो

    दशहरे पर रावण बनाता और दूरदराज़ तक अपनी रची पतंगें पहुँचाता

    मैंने तथा मेरे बेटे ने

    एक साथ देखी पतंग

    फिर हम पहाड़ी के ऊपरी सिरे तक चले गए

    वहाँ-जहाँ सर्रसर्र हवा थी, बहती—छूती हुई

    पापा!

    यही खड़े होकर ही तो उड़ाते रहे होंगे राजा पतंग

    हो सकता है—मैंने कहा

    तभी, तभी तो—

    बोला बेटा

    पतंग लूटने वालों का नाम नहीं है लिखा वहाँ

    क्या उतरते रहे होंगे इसी खाई में

    अपने बाँस, झाड़, धागों के सिरों पर लटकते पत्थर लेकर

    और राजा तो

    कट जाने पर एकदम बनवा लेते होंगे

    नई पतंग

    पर उनसे पेंच कौन लड़ाता होगा पापा?

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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