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परदा

parda

हरीशचंद्र पांडे

अन्य

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और अधिकहरीशचंद्र पांडे

    जिसमें हिरन कुलाँचे भर रहे हैं

    जिसमें बंदर छलाँग मार रहे हैं एक पेड़ से

    दूसरे पेड़ के लिए

    जिसमें सूर्य बादलों की ओट से झाँक रहा है

    जिसमें विभिन्न प्रजातियों के पेड़ों की एक शृंखला है

    एक परदा है

    दरवाज़े पर लटका हुआ

    इस परदे की मोटाई और दृश्य प्रधान होना ही

    इसे पसंद किए जाने का कारण था कभी

    थान से फाड़ते वक़्त इस परदे के कपड़े की

    एक आवाज़ हुई थी

    किसी आज़ाद होते देश को दी गई

    तोपों की सलामी-सी

    बच्चों की तालियों के बीच

    एक मज़बूत डोरी में दरवाज़े पर

    टाँग दिया गया था यह परदा

    एक स्थान को दो भागों में विभाजित करता हुआ

    इस परदे की अपनी एक अलग सत्ता है

    वर्षों से लटक रहा है जो दरवाज़े पर

    इसमें कुलाँचे भरते हिरनों के पाँव

    ज़मीन को छू नहीं पाए हैं अभी तक

    बंदरों की वो लंबी छलाँग

    हवा में ही है अभी भी

    सूर्य बादलों की गिरफ्त़ से

    बाहर नहीं निकल पाया है

    जंगल के छोटे पेड़

    छोटे हैं अब भी

    बड़े पेड़ अभी भी बड़े हैं

    हिरनों की आँखों की चमक खो गई है

    पत्तियों में क्लोरोफिल

    बनना बंद हो गया है

    हमारे अविभाज्य अखंड दृश्य-जगत को

    दो लोकों में बाँटता

    आत्महत्या की परिणति-सा

    लटका हुआ है परदा

    एक नए जन्म की प्रतीक्षा में

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरीशचंद्र पांडे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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