परस्पर विरोधी

paraspar wirodhi

मीनाक्षी मिश्र

मीनाक्षी मिश्र

परस्पर विरोधी

मीनाक्षी मिश्र

लोगों को अक्सर दिग्भ्रमित करता है

मेरा सदाचारी चेहरा

पर इस चेहरे के पीछे मैं दरअसल

एक गुप्त अभियान की अगुवाई करती हूँ

पहाड़ों की हूँ

पर मेरे पार्श्व में नदी का संगीत नहीं

शहर की उत्तेजना बहती है,

मुझे आकर्षित करती है

कछार के दूसरी ओर से आती मादक गंध

इतना विद्वेषपूर्ण मौन है मेरे भीतर

कि खीज की हद तक खीज से भरी हूँ,

क्रोध में संयत दिखने का आपराधिक साहस करती हूँ

और सुख में विनीत दिखने का पाखंड

अभिनय में इतनी प्रवीण

कि दया की पात्र दिखती हूँ हरदम

फिर भी बड़ी ही नफ़ासत से कर लेती हूँ

'स्वभावो अध्यात्म उच्यते' का उच्चारण

मेरे व्यक्तित्व के अवयवों में

मुख्य रूप से है शामिल

पहाड़ों की खुरचन, शहर के अवरोध

और एक चिरंतन अव्यवस्था

दर्पण में प्रतिबिंबित होती मेरी छवि

और मैं

परस्पर विरोधी हैं

स्रोत :
  • रचनाकार : मीनाक्षी मिश्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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