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प्रार्थना

pararthna

अलेक्सांद्र पूश्किन

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और अधिकअलेक्सांद्र पूश्किन

    जग के संकट-संघर्षों में मन को सुदृढ़ बनाने को,

    और हृदय को स्वर्गपुरी की ड्योढ़ी तक पहुँचाने को,

    भक्तों ने भक्तिनियों ने भी, जिनके काम चरित्र पुनीत

    लिख-लिख गाए और सुनाए हैं कितने ही पावन गीत।

    लेकिन उन अगणित गीतों में, भजन-पदों में केवल एक

    है ऐसा जिससे होता है मुझमें भावों का उद्रेक।

    उपवासों की, पश्चातापों की, तिथियाँ जब आती हैं,

    वही प्रार्थना तब हर गिरजे में दुहराई जाती है।

    वही प्रार्थना उठा करेगी मेरे उर से बारंबार,

    वही करेगी मेरे निबल मानस में बल का संचार—

    मेरी श्वासों के स्वामी! दो मुझको ऐसा वरदान,

    मेरे निकट फटके आलस और निराशा का शैतान।

    मन से कटकर जीभ रटती जाए घटवासी का नाम,

    करे नहीं विषयों का विषधर मेरे मन को अपना धाम।

    अपने भाई की भूलों की ओर जाए मेरा ध्यान,

    किंतु अपने अपराधों को कभी करूँ मैं क्षमा प्रदान।

    जाग्रत हो मेरे अंतर में भाव समर्पण का, भगवान!

    प्रेम, तपस्या, पावनता में देखूँ मैं अपना कल्याण।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 65)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र पूश्किन
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 1964

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