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पक्ष

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लवली गोस्वामी

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और अधिकलवली गोस्वामी

    मेरे आस-पास परछाइयों की एक फ़ौज चलती है

    जिससे उजाले में रहने वाले भाग्यशाली लोग असहज होते हैं

    जिन्हें ख़ुश रहने से अलग कुछ पसंद नहीं है

    वे मुझसे पूरी शिद्दत से नफ़रत करते है

    मैं सुखांत कहानियों के उत्सवों में

    शोक की अनंतिम गाथाओं के अधूरे प्लॉट लिए घूमती हूँ

    लोगों की चमकीली नज़रें मुझ पर पड़ते ही

    छायाओं के वश में आकर चितकोबरी हो जाती हैं

    मैं दूध में गिरा नमक हूँ

    सुवासित भात खाते वक़्त दाँतों के बीच आया कंकर हूँ

    सबसे कमज़ोर कराह को सुनने के लिए मैंने

    बीच महफ़िल में पुरज़ोर झनकती वीणा के तार पकड़े

    मैं सुरों की अपराधी मानी गई

    मैंने पाप के रंग को चुटकियों में मसलकर देखा

    बहुमूल्य पुण्य की गठरियाँ

    डगमगाती नौका बचाने के लिए पानी में बहा दी

    मैं पुण्य और उपयोगिता की एक बराबर हँसी उड़ाती हूँ

    यह क़तई मेरी मासूमियत नहीं मेरी दुष्टता है

    मेरी दुष्टता है कि मैं निष्पक्ष नहीं हूँ

    साथी कवियों की तरह

    मैंने कभी कविता के भविष्य की चिंता नहीं की

    मुझे पता है जब तक दुःख और आशाएँ रहेंगी,

    कविता भी रहेगी

    रहेगी कविता, दुःखों की जर्जर कथरी में

    आशा के वफ़ादार पैबंद की तरह

    तकलीफ़ों की भीषण झाँझ बरसात में

    कमज़ोर लेकिन जी-जान लगाकर लड़ती

    छतरी के साथ की तरह

    दुनिया में कविता तब तक रहेगी

    जब तक दुनिया में दुःख रहेंगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : लवली गोस्वामी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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