प-ट-ना

pa t na

शुभम श्री

शुभम श्री

प-ट-ना

शुभम श्री

पता नहीं वो कौन से सनम हैं जिनके महबूब शहर हुआ करते हैं।

उन आशिकों की माशूक़ गलियाँ, गालियाँ, नुक्कड़, दुकानें, मिठाइयाँ

तमाम मार लिफ़ाफ़ियाँ

बुद्धू-सा कोई पढ़ने वाला तो खिंचा चला जाए उस शहर में

जैसे कि बनारस

आदमी गोबर से बचे कि पान की पीक से

चप्पल चोर से बचे कि पंडों से

सबसे बचे तो बित्ते भर की जगह में घुसी चली आती साइकिल से कैसे बचे

और बच भी जाए तो बजबजाती गंगाजी में चहक-चहक कर पेशाब करते लड़कों की बग़ल में

नहाने से कैसे बचे

काशी का महात्म्य है

बनारस का जादू है

पटना का क्या है

हलुआ!

पूरा शहर एक विशाल कूड़ेदान है

समझ लें कि एक बड़ा पीकदान है

जिसमें कुल्ले से लेकर पान और गुटके से लेकर गुल, कहीं भी थूका जा सकता है

मौसम कोई भी हो पानी इतना ज़रूर जमता है कि लोग पैदल सड़क पार करने से ज़्यादा तेज़ ईंटों पर तालाब पार कर लें

और यह सब प्रपंच होता रहता है दिन-रात शहर के शाश्वत संगीत राग टेंपू-ध्वनि पर

इसी बैकग्राउंड में रियाज़ करता है पटनावासी सप्तम सुर पर

हीरोगीरी प्रकट करते महिंद्रा मोटर्स पर अश-अश करता

देश भर में जितने स्कॉर्पियो, बोलेरो होंगे उतने सिर्फ़ बेली रोड पर ही

और उन पर शोभायमान वार्ड पार्षद, ब्लॉक सचिव सहित छात्र मोर्चा अध्यक्ष

जिनके शीशों से टकराकर बदबू की तेज़ लहर लौट जाती है किसी रिक्शेवाले के नाक में घुसने के लिए

इस ज़माने में बीस रुपइया गिलास सत्तू बेचने पर आदमी ठेलेवाले को पाकिस्तान भेज दे रहा है

यहाँ नेता तय ही नहीं कर पा रहा है किसको पाकिस्तान भेजे

अजीब मुसीबत है

जातियों के अखिल भारतीय महासम्मेलन हो रहे हैं

बेटे आईआईटी कंपीट कर रहे हैं

बेटियाँ मेडिकल कंपीट कर रही हैं

कोचिंग पढ़ाने वाले रेंज रोवर चला रहे हैं

अब पटना यूनीवर्सिटी के लिए भी यही बेहतर होगा कि एक बोर्ड लगा ले

‘यहा तइयारी करने बाले बिद्यार्थीयो को डिगरी दिलाया जाता है, सीघ्र संपर्क करे’

जिस तरह महावीर मंदिर की लाइन फ़्रेज़र रोड तक पहुँच रही है,

कोई शक नहीं अगले कुछ साल में वैष्णो देवी और तिरुपति को डाउन कर देगा महाबीर मंदिर

मॉल बन रहा है, लिट फ़ेस्ट हो रहा है, डोमिनोज़ खुल रहा है

पटना अब वही पटना रहा क्या

पटना बहूत एडभांस हो गया (अब तो जनानियाँ भी खुलेआम सूट पहनने लग गई हैं)

हाय रे पसिंजर, इसी पटना के गुमान में भर रस्ता बिलाई बनके आने के बाद बक्सर से तुमको गर्मी चढ़ जाता है

यहीं, जहाँ रिक्शा मीठापुर बस स्टैंड जाने के लिए पचास रुपइया भाड़ा माँग के तुम्हारा गर्मी झाड़ देता है।

स्रोत :
  • रचनाकार : शुभम श्री
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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