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विषाद की नदी किनारे

wishad ki nadi kinare

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

अन्य

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मनोरमा बिश्वाल महापात्र

विषाद की नदी किनारे

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

कविता में जीना कितना मुश्किल

नहीं जानते

कवि के बूँद भर आँसू की दुनिया में

भूकंप होता रहे बार-बार

काँप जाता असहाय कवि का जीवन।

अँजुरी-अँजुरी आँसू

भिगो देते जीवन को

कवि मन को

समूचे जीवन के हस्ताक्षर

कष्ट होता पढ़ने में

बंध्या जीवन की विफलता

छा जाती कवि की पृथ्वी पर।

विषाद की नदी किनारे

अकेले-अकेले जीना उसकी नियति

सारी रात उनींदे में

उत्कंठा में बिताना उसकी नियति

स्वप्न देखता आदमी

दुःख के पत्थर तले दब जाता

पूरे समय उबलता रहे

विष की ज्वाला में।

ज्वालामय जीवन का भार ढोते-ढोते

कविता में जी नहीं पाता।

उसके अकेलेपन में

क्रूसविद्ध होता रहे

उसकी उदासीनता में

घिसता जाए

बूँद भर आँसू में

झलमलाते कवि का जीवन।

तनिक नेह में, समूची सत्ता में उसके

छा जाता सुकुमारपन

उसकी दीर्घ साँस के आकाश की छाती

क्रमशः नीली होती जाती

बैठा रहे अकेला

विषाद की क्षीण नदी धार में।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 241)
  • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
  • रचनाकार : मनोरमा बिश्वाल महापात्र
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2009

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