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अहल्या

ahalya

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

सौभाग्य कुमार मिश्र

अन्य

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और अधिकसौभाग्य कुमार मिश्र

    वह अनुभव

    अपनी लालसा का

    या दूसरे के बलात्कार का!

    उनका परिचित चेहरा दिख रहा

    सदा जैसे दिखता,

    गंभीर और उज्ज्वल।

    मैंने सिर्फ़ पूछा, याद है—

    इतनी जल्दी आप लौट आए?

    कोई उत्तर देकर उन्होंने

    धो लिए हाथ-पाँव

    पकड़कर मेरा हाथ

    ले गए मुझे कुश-शैया पर

    संभ्रम में,

    होमाग्नि सजाई हो जैसे

    अविचल कठोर शांति में।

    आँख मुँदने लगी

    मानो मुँद रहा पद्म

    सूरज को ढाँपकर,

    सूर्य की स्मृति को;

    मैं चौंकने लगी बिजली की तरह।

    लहर भरा पानी थिर होने से पहले,

    मैं अपने प्रतिबिम्ब में लीन होने से पहले,

    उन्होंने आवाज़ दी मेरा नाम लेकर मुझे,

    आश्रम के बाहर

    मालती लता की जड़ सूखती देख

    कुछ झिड़क भी दिया।

    कुछ नहीं समझ पाई

    समझ ही सकी

    कौन-सी पगध्वनि

    कौन-सा स्वर सत्य का है।

    मैं खड़ी रह गई चुपचाप

    लीन हो गया मेरा स्वर

    कुश के तिनके की तरह

    उनके जलते शाप में।

    वह आग क्या मेरी अज्ञता का

    चिराचरित पुरस्कार?

    दक्षिण क्या दक्षिण, उत्तर

    वर्षणोन्मुख मेघ का

    अपेक्षा करते पत्थर का?

    क्या पता किस पाद के आघात में

    फिर मंजरित हो उठूँगी मैं

    अशोक तरु।

    पर वो और हो,

    खाली पड़ा होगा आश्रम

    उनके अपने अभिशाप-सा,

    सत्य-सा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 175)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : सौभाग्य कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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