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निशानदेही

nishandehi

जुगिंदर अमर

अन्य

अन्य

जुगिंदर अमर

निशानदेही

जुगिंदर अमर

वे जो बैठे थे मेरे पास

कुछ कहते-कहते

हो गए ख़ामोश

शायद कोई संशय

उनके बीच गया

या समय की निशानदेही

फिसली उनके विश्वास से

कुछ भी हो

वातावरण में एक सन्नाटा

पसरा था

इससे पूर्व कि

उनके दुख-सुख के साथ

मैं कोई संवाद स्थापित करता

वह विदा के वास्ते

मेरे पास ठंडे शीत शब्दों का

एक भ्रम छोड़कर

चले गए

मेरे मन पर चुप्पी का एक

असहनीय भार

लंबे समय तक

घोंसला बनाए टिका रहा।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 431)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014

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