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नीली आग वाली लड़की

nili aag vali laDki

पाब्लो नेरूदा

अन्य

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पाब्लो नेरूदा

नीली आग वाली लड़की

पाब्लो नेरूदा

जैसे क्षीर-सागर के किनारे सैकत राशि पर

या अथाह आकाश में जड़े हुए

एक धधकते हुए नक्षत्र के बीचोबीच

मैं सो रहा था : मेरे समीप थी एक पवित्र लड़की!

उसकी निगाहों से तिरछी हरी-भरी किरणों

के निर्मल झरने झरते थे

उनमें स्वच्छ, पारदर्शी और अदम्य शक्ति की भँवरें थीं

दो जादू भरे उभारों में

दो अग्नि-शिखाएँ लहक रही थीं

और वे अग्नि-धाराएँ स्वच्छ माँसल लहरों में इठलाती हुई

कदली खंभ जैसी जाँघों से तैरती हुई

उसके चरणों तक उतर गई थीं!

एक स्वर्ण फ़सल जो अभी पकी नहीं

उसके कंचन तन के चढ़ावों-उतारों में रहस्यमय भविष्य थे,

और जादूगरों की नीली-नीली आग सुलग-सुलग उठती थी।

स्रोत :
  • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 194)
  • संपादक : धर्मवीर भारती
  • रचनाकार : पाब्लो नेरूदा
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
  • संस्करण : 1960

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