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रास्ता

rasta

रमेश क्षितिज

अन्य

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और अधिकरमेश क्षितिज

     

    कहाँ जाता है भाई यह रास्ता?
    अभी-अभी ही पहाड़ से उतरकर आया एक निर्दोष चेहरा
    खड़ा होता है मेरे आगे और क़ायल बनाता है मुझे
    अन्यौलग्रस्त मैं देखता ही रहता हूँ
    चारों ओर फैले हुए रास्ते-ही-रास्ते

    उस वक़्त उस दुर्गम गाँव में रहकर
    मैं ढूँढ़ता रहता था रास्ता और
    पहुँचना चाहता था—निष्पक्ष न्यायालय
    ग़रीबों के बच्चे पढ़ने वाले स्कूल
    और दूर के रहस्यमय शहर
    पर कहीं नहीं पहुँचा वो निर्दयी रास्ता
    लेकिन लेटा ही रहा कोई थकित मुसाफ़िर-सा
    पहाड़ के पहलू में आराम से

    मैंने बिताया है अपना बचपन
    गायों के झुंड के पीछे-पीछे चलते हुए
    हर साँझ तमन्नाओं की बाँसुरी फूँकते हुए

    इसके बाद हम नई जगह रहने आ गए
    अभी भी मैं चाहता हूँ कि कहीं जाए यह रास्ता
    और ले जाए मुझे मेरे सपनों की बुलंदियों तलक
    किसी वृद्ध अभिभावक की तरह कंधे पर लिए
    दिखाए मुझे मेरा मुक़ाम

    कहीं गया नहीं वो बल्कि अजगर की तरह लिपटकर
    रास्तों ने बाँधे रखा मुझे
    विद्रोह करके घर से निकल आया मैं इक रात
    इन्हीं रास्तों की भीड़ में!

    हाँ, उसके बाद रास्तों ने लाकर छोड़ दिया मुझे
    इस व्यस्त चौक पर और ख़ुद लौट गया कहीं
    खड़ा हूँ मैं चौक के बीचों-बीच प्रतिमा-सा
    उस वक़्त से
    तलाश है अभी तक लगातार नए रास्तों की

    इसी रास्ते कोई जा रहा है सिंह दरबार
    कोई मलेशिया या कोरिया और युद्धग्रस्त इराक़ भी
    कहीं नहीं जाता यह रास्ता, जाता ही नहीं
    लेकिन आपको जाना कहाँ है, भैया?   

                  
    स्रोत :
    • रचनाकार : रमेश क्षितिज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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