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पीपल का पेड़

pipal ka peD

रमेश क्षितिज

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रमेश क्षितिज

पीपल का पेड़

रमेश क्षितिज

और अधिकरमेश क्षितिज

     

    नीड़ की ओर लौट रहे हैं परिंदे
    साँझ के रंगीन फ़लक पर

    परे मोड़ पर ट्रिंग-ट्रिंग घंटी बजाते हुए
    पैरों से धूल उड़ाते हुए रास्ते में
    खटाल पे लौट रहा है गायों का झुँड
    ध्यानस्थ किसी ऋषि की तरह
    प्रतीक्षारत हो तुम पीपल के पेड़ के नीचे
    इसी तरह इंतज़ार करते-करते इंतक़ाल होगा जीवन का

    तुम इक वायलिन
    बार-बार बजाता रहेगा मृत्यु संगीतकार बनकर
    संत्रास की खण्डित धुन
    गिटार बजा रहे हों जैसे
    उसके क्रूर कठोर उँगलियाँ चलेंगी
    तुम्हारे रेशमी बालों की सुनहरी तारों पर

    पूरी तरह से भीगते हुए – अश्कों के राग बहेंगे
    तुम्हारे गालों से होते हुए
    लोकलय-सी रोने की धुन फैलेगी इन हवाओं के झोंकों पे
    कोई नहीं होगा देखने वाला एकांत की मौत
    चिल्लाते-चिल्लाते केवल तुम्हारी प्रतिध्वनि ही बाक़ी रह जाएगी
    इन कंदराओं और खोंचो पर!

    तुम्हारी लाश के ऊपर गिरेंगे पीपल के बीज
    और उग आएगा इक पौधा
    पीपल के पेड़ के नीचे इंतज़ार करते-करते
    तुम ख़ुद पीपल बन जाओगे किसी दिन!
    पता नहीं तुम्हें जिससे उल्फ़त है वो निठुर आशिक़
    तुमसे मिलने
    लौट आएगा कि नहीं इसी रास्ते होते हुए
    लौट कर भी बैठेगा कि नहीं तुम्हारे साए में!

    चबुतरे पर बैठकर सोचता हूँ मैं कभी
    किसी दिन
    किसी का इंतज़ार कर रहा आदमी तो नहीं थी यह पीपल? 

              
    स्रोत :
    • रचनाकार : रमेश क्षितिज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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