धूप को ढोकर

dhoop ko Dhokar

मनप्रसाद सुब्बा

मनप्रसाद सुब्बा

धूप को ढोकर

मनप्रसाद सुब्बा

बार-बार दोहराया जाने वाला एक झंझट बनकर

अर्थात् एक कठोर यथार्थ बनकर

या तो कोई जलती हुई याद बनकर

मेरे घर के बरामदे में

लेटी रहती है धूप छटपटाते हुए,

सुबह मेरे जगने से पहले से ही।

कंधे पर इसी धूप का बोझा ढोकर

भाप बने क्षण टप-टप टपकाते हुए

मैं जा रहा हूँ बाज़ार, ऑफ़िस और शराब की भट्टी

कंधा झुलसकर जलने तक का एहसास हो ऐसे

ग्रीष्म की धूप ढोकर चलते रहने से

जीवनभर ही क्या छुटकारा नहीं मिल पाएगा?

स्रोत :
  • पुस्तक : ऋतु कैनवास पर रेखाएँ (पृष्ठ 28)
  • रचनाकार : मनप्रसाद सुब्बा
  • प्रकाशन : नीरज बुक सेंटर
  • संस्करण : 2013

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY