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दीवानों की हस्ती

diwanon ki hasti

भगवतीचरण वर्मा

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भगवतीचरण वर्मा

दीवानों की हस्ती

भगवतीचरण वर्मा

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    हम दीवानों की क्या हस्ती,

    हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,

    मस्ती का आलम साथ चला,

    हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

    आए बनकर उल्लास अभी,

    आँसू बनकर बह चले अभी,

    सब कहते ही रह गए, अरे,

    तुम कैसे आए, कहाँ चले?

    किस ओर चले? यह मत पूछो,

    चलना है, बस इसलिए चले,

    जग से उसका कुछ लिए चले,

    जग को अपना कुछ दिए चले,

    दो बात कही, दो बात सुनी;

    कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।

    छककर सुख-दु:ख के घूँटों को

    हम एक भाव से पिए चले।

    हम भिखमंगों की दुनिया में,

    स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,

    हम एक निसानी-सी उर पर,

    ले असफलता का भार चले।

    अब अपना और पराया क्या?

    आबाद रहें रुकने वाले!

    हम स्वयं बँधे थे और स्वयं

    हम अपने बंधन तोड़ चले।

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    भगवतीचरण वर्मा

    भगवतीचरण वर्मा

    स्रोत :
    • पुस्तक : वसंत (भाग-3) (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : भगवतीचरण वर्मा
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

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