Font by Mehr Nastaliq Web

एक माँ की बेबसी

ek man ki bebasi

कुँवर नारायण

अन्य

अन्य

कुँवर नारायण

एक माँ की बेबसी

कुँवर नारायण

और अधिककुँवर नारायण

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    इस कविता को पढ़ते समय, आँखों के सामने कई चित्र बनते हैं। बचपन का चित्र, बचपन के ख़ास समय खेल और साथियों का चित्र, उन साथियों में एक ख़ास साथी रतन का और एक माँ का चित्र। इसे पढ़ो और महसूस करो।

    कविता धीरे-धीरे पढ़ने की चीज़ है। उसे मन में उतरने में काफ़ी समय लगता है। कभी-कभी तो बरसों बाद हम बचपन की पढ़ी कविता पढ़ते हैं तो लगता है—पहली बार पढ़ा है इसे। कविता पढ़ने के बाद मन के किसी कोने में घर बना लेती हैं। किसी मौक़े पर वह उभर आती है।

    कविता, कहानी, सबके साथ यह होता है। इसीलिए हमें इससे चिंतित होने की ज़रूरत नहीं कि कविता एक बार में पूरी तरह समझ में आ रही है या नहीं। अगर उससे सिर्फ़ एक चित्र ही उभरता है तो भी कविता कामयाब है।

    हिंदवी

     

    न जाने किस अदृश्य पड़ोस से

    निकल कर आता था वह 

    खेलने हमारे साथ—

    रतन, जो बोल नहीं सकता था

    खेलता था हमारे साथ

    एक टूटे खिलौने की तरह

    देखने में हम बच्चों की ही तरह

    था वह भी एक बच्चा।

    लेकिन हम बच्चों के लिए अजूबा था

    क्योंकि हमसे भिन्न था।

    थोड़ा घबराते भी थे हम उससे

    क्योंकि समझ नहीं पाते थे

    उसकी घबराहटों को,

    न इशारों में कही उसकी बातों को,

    न उसकी भयभीत आँखों में

    हर समय दिखती

    उसके अंदर की छटपटाहटों को।

    जितनी देर वह रहता

    पास बैठी उसक माँ

    निहारती रहती उसका खेलना।

    अब जैसे-जैसे

    कुछ बेहतर समझने लगा हूँ

    उनकी भाषा जो बोल नहीं पाते हैं

    याद आती

    रतन से अधिक

    उसकी माँ की आँखों में

    झलकती उसकी बेबसी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 68)
    • रचनाकार : कुँवर नारायण
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY