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छोटी-सी हमारी नदी

chhoti si hamari nadi

रवींद्रनाथ टैगोर

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रवींद्रनाथ टैगोर

छोटी-सी हमारी नदी

रवींद्रनाथ टैगोर

और अधिकरवींद्रनाथ टैगोर

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    हिंदवी

    छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी-मेढ़ी धार,

    गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार।

    पार जाते ढोर-डंगर, बैलगाड़ी चालू,

    ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू।

    पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम,

    काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम।

    दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार,

    रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार।

    अमराई दूजे किनारे और ताड़-वन,

    छाँहों-छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन।

    कच्चे-कच्चे धार-कछारों पर उछल नहा लें,

    गमछों-गमछों पानी भर-भर अंग-अंग पर ढालें।

    कभी-कभी वे साँझ-सकारे निबटा कर नहाना

    छोटी-छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना।

    बहुएँ लोटे-थाल माँजती रगड़-रगड़ कर रेती,

    कपड़े धोतीं, घर के कामों के लिए चल देतीं।

    जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती।

    वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल,

    गँदले जल में घिरनी-भँवरी भँवराती है चंचल।

    दोनों पारों के वन-वन में मच जाता है रोला

    वर्षा के उत्सव में सारा जग उठता है टोला।

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    रवींद्रनाथ टैगोर

    रवींद्रनाथ टैगोर

    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 134)
    • रचनाकार : रवींद्रनाथ टैगोर
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022

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