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नर्तकी

nartki

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

रमाकांत रथ

अन्य

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रमाकांत रथ

नर्तकी

रमाकांत रथ

और अधिकरमाकांत रथ

    वह आई है नाचने अंतिम बार,

    देखो उसकी माँग चमक रही है

    आधी रात को मोटरगाड़ी की रोशनी में

    गाँव की सड़क की तरह,

    पर मुझे बहुत अच्छे लगते हैं उसके बाल,

    उसके बालों में होते हैं

    सुदूर पर्वत के दुःख और उत्कंठा।

    स्वर्णवर्णी बाल उसके हैं इतने घने कि

    उस अरण्य में कई मृत्यु लापता हो जाती हैं।

    काँप रहे हैं उसके पैर

    कौन-सा नाच कोशिश कर रहा है

    बच्चे की तरह बाहर आने

    और दहाड़ें मार-मारकर पृथ्वी पर रोने की,

    इतने आँसुओं के लिए क्या जगह है गर्भ में?

    पर मेरी नर्तकी की देह में जगह कहाँ?

    जगह कहाँ है किसी मंच पर?

    चलो उठो नर्तकी,

    हो उठे हैं अधीर दर्शक

    जानता हूँ मैं कि मंच पर आकर

    नाचने के लिए पैर बढ़ाते ही

    तुम मर जाओगी,

    क्रोध और घृणा से मर जाओगी

    और लौट जाओगी

    अपने गर्भ-नृत्य के अँधेरे में,

    किंतु यदि बिन नाचे रह गई

    तो भी मृत्यु होगी

    घंटों शून्य प्रतीक्षा की।

    कालक्रम में वह प्रतीक्षा लगेगी

    बुढ़ापे की तरह काली,

    कालक्रम में हवा से आएगी सड़ांध,

    ठंडी होगी सेज,

    सड़क बाज़ार सुनसान,

    सूना दिन, सूनी रात,

    आएगी सिर्फ़ वीराने स्टेशन से

    ट्रेन गुज़रने की आवाज़।

    दोनों ही मृत्यु हैं,

    नहीं कोई तीसरा उपाय।

    अधीर हैं दर्शक।

    पुनर्जन्म है अनिश्चित।

    अलविदा अलविदा!

    स्रोत :
    • पुस्तक : तैयार रहो मेरी आत्मा (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : रमाकांत रथ
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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