मत पूछो नाम

mat puchho nam

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

मत पूछो नाम

मोना गुलाटी

सन् 1984 के दंगों और भोपाल की गैस त्रासदी पर

तुम मत पूछो नाम : नाम—आग की लपटों में

झुलसते इस ज़िंदा जिस्म का :

नाम : लंबे बालों का

पिघलती बरौनियों का : उठती हुई बेतहाशा चीख़ों का : सहमी

आँखों का, टूटे हाथों का : फटी हुई पैंटों का

नाम : मत पूछो नाम!

नामों की लंबी क़तार पीछे लगातार घिसटती चली रही है

ख़ून से लथपथ डिब्बों में

उदास ख़यालों के साथ और

मंत्रोच्चार के

साथ दी जा रही है

उनकी आहुति देश के नाम :

देश : —ऐसा देश : —जिसने सोचा भी नहीं था

इतना बड़ा चमत्कार :

ऐसा देश

जो संतुष्ट था

बुद्ध, गांधी, कबीर

नानक जैसे छोटे चमत्कारों से,

जिसने चाणक्य को केवल

कूटनीतिज्ञ के नाम से जाना था :

काँप रहा है देश वीभत्स चीत्कार करता हुआ

इस चमत्कार को नाम देने से पहले—दानवी आकार

लेता है एक तंत्र और

फूटती है हवा बाहर

संयत्रों के दमघोंटू उबाऊ वातावरण से

छाने के लिए

पूरे देश में—लीलने के

लिए कालातंत्र : एक लंबा—फैला हुआ हाथ

मौत का शिकंजा बनता जाता है

घोंटता है साँस

और फिसल कर सीढ़ियों पर

आगे बढ़ जाता है!

मुझे नहीं मालूम

इस लंबे हाथ का षड्यंत्र कहाँ तक खींचेगा

खाल : किसकी रानों पर

चाबुक के निशान उभरेंगे और

किसकी नाक पर

ईद का चाँद चमकेगा :

लेकिन इतना

इस मिट्टी

तक को पता है कि अब

केसरी फूल उगाने की कशिश

इस मिट्टी में

देश के नाम पर

फिर नहीं उगेगी

इतिहासांत तक!

स्रोत :
  • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 18)
  • रचनाकार : मोना गुलाटी

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