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नमक

namak

मुकेश कुमार सिन्हा

अन्य

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और अधिकमुकेश कुमार सिन्हा

    चश्मे से झाँकती नज़रें

    पलकों के झपकने से इतर

    बेशक नहीं बता पाती है

    नज़रों में है नमक

    पर चश्मे के काँच से

    परावर्तित और फिर आपतित किरणों की धनक

    समझा पाती है कि कहीं तो है

    प्रेम का नमक

    उम्र के कई सारे

    मील के पत्थरों को पार करने के उपरांत

    पाई थी सौम्यता

    पर मीठे शब्दों के सँवाद से

    जन्मी सहृदयता ने

    चुपके से बताया

    आज भी करता है असर

    चेहरे का नमक

    वैसे भी

    किसी को भा जाने की वजह

    नहीं होती सिर्फ़ सुंदरता

    सुंदर होने के मायने

    बदलते हैं

    बुद्धिमत्ता के सांद्रता से

    कोई भी नहीं पसंद करता समुद्री नमक

    चाहते होती हैं

    छौंक हों, जिसमें हो नमक

    फिर पावर वाले चश्मे से

    पार करती पारखी नज़रें

    चाहती हैं कभी-कभी

    कि घायल शख़्स का इलाज

    कर पाएँ वो

    उन मीठे शब्दों से

    जिसमें रोगी ढूँढ़ रहा होता है नमक

    महज़ ख़ूबसूरतीं

    क्यों दिखे, क्यों मह्सूस लें

    आख़िर मुस्कान और डिंपल का कॉकटेल

    करता है नशा कई गुना

    बस खोया पाया विभाग के क्लर्क जैसा

    अभी तो मिला, अभी ग़ायब

    कहाँ कहाँ ढूँढ़ेगा बेचारा, नमक

    प्रेम के नमक का भी होता है

    कुछ ख़ास असर

    तभी तो नमक आंदोलन-सा

    प्रेमी करते हैं कारगुज़ारी

    जैसे सविनय अवज्ञा आंदोलन

    बेशक मानी जाए बात

    पर नज़रों मे होता है गुलाबी असर

    उफ़, हर बात मे है नमक

    ख़ास है प्रेम का नमक!!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुकेश कुमार सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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