नए अर्थ की प्यास में

nae arth ki pyas mein

भवानीप्रसाद मिश्र

भवानीप्रसाद मिश्र

नए अर्थ की प्यास में

भवानीप्रसाद मिश्र

नए अर्थ की प्यास में डूब गया शब्द

मन का ग़ाेताख़ाेर डूब गया उभरकर

भँवर में अविश्वास के

हुआ ही कुछ तो यह हुआ कि

उमड़ लिए धारा के ऊपर-ऊपर

संदर्भों के घन और फिर वे भी

झंझावात में उड़ गए

बरस लिए शायद जाकर किन्हीं

अनजाने मैदानों में

और छू गई अगर आकर ठंडी

उन प्रांतरों की तो छटपटाए

नए अर्थों के लिए डूबे-डूबे शब्द

छूकर ठंडी हवा

पानी की लकीरें बनकर

गए डूबे-उभरे शब्द

संदर्भों भरी भँवरी से

वापस ही नहीं हुए

मोती के लिए तल तक पैठे हुए

मछुए!

स्रोत :
  • पुस्तक : मन एक मैली क़मीज़ है (पृष्ठ 85)
  • संपादक : नंदकिशोर आचार्य
  • रचनाकार : भवानी प्रसाद मिश्र
  • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
  • संस्करण : 1998

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