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नदी सरीखे ईश्वर की रक्षा हेतु

nadi sarikhe iishvar ki raksha hetu

योगेश कुमार ध्यानी

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योगेश कुमार ध्यानी

नदी सरीखे ईश्वर की रक्षा हेतु

योगेश कुमार ध्यानी

और अधिकयोगेश कुमार ध्यानी

    हम जिस भी सर्वोच्च सत्ता के उपासक हैं

    इत्तेला कर दें उसे

    शीघ्रातिशीघ्र

    कि हमारी प्रार्थना और हमारे ईश्वर के मध्य

    घुसपैठ कर गए हैं धर्म के बिचौलिए

    बेमतलब गूँजों और अनर्गल उपदेशों के साथ

    मेरी नन्ही उँगली जो छू लेती थी तुम्हें

    उस नदी को छूकर जो तर करती है

    चिड़िया के सूखे कंठ को

    भटक जाती है अब भीड़ के शोर में

    भटकते-भटकते जहाँ पहुँचते हैं मेरे करबद्ध हाथ

    वहाँ वास्तुकला का अपूर्व ढाँचा है

    नक्काशी है, भवन है, गौरवमई इतिहास है

    सब कुछ है

    लेकिन वहाँ आए दिन चलते हैं असलहे

    वहाँ मनुष्यता कहाँ है?

    इमारत किसी भी संप्रदाय की हो

    अफ़सोस, ईश्वर से खाली है!

    ईश्वर की असीम सत्ता स्थापित करने की

    महत्वाकाँक्षी योजना में

    वे भूल रहे हैं एक बात

    हिंसा से हासिल स्थान से तो

    वैसे भी विस्थापित हो जाएगा ईश्वर

    ईश्वर कोई बादशाह नहीं

    जिसे तख़्त की चाह हो

    डरो, कहीं कूच कर जाए

    हर उस इमारत से भरोसे नाम का ईश्वर

    जिस पर किसी खास रंग का झंडा लगा है।

    ईश के सच्चे उपासकों,

    यदि चलता रहा यूँ ही सब कुछ

    तो एक दिन तुम्हें देना होगा

    अपने ईश्वर को ज़हन-निकाला

    या फिर स्वीकार करना होगा देश-निकाला

    अपने उस नदी सरीखे कोमल

    ईश्वर की रक्षा हेतु।

    स्रोत :
    • रचनाकार : योगेश कुमार ध्यानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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