Font by Mehr Nastaliq Web

मुश्ताक़ मियाँ की दौड़

mushtaq miyan ki dauD

सविता सिंह

अन्य

अन्य

सविता सिंह

मुश्ताक़ मियाँ की दौड़

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    दौड़ते रहे मुश्ताक़ मियाँ बेचारे

    ढाबा चलाते थे

    लाखों लोगों को अब तक खिला चुके थे

    गोश्त रोटी तरकारी दाल सलाद

    कौन नहीं आता था बैठता था उनकी बेंच पर

    पीता था पानी मिटाता था थकान और भूख

    उन्हें क्या पता था आज बदल चुके हैं

    सारे पते ठिकाने दोस्तों के

    सबके दिल पत्थर हो चुके हैं

    सब छोड़ भागना पड़ेगा कब सोचा था उन्होंने

    और भागने पर नहीं मिलेगा कोई ठिकाना

    कि लें साँस ठहर कर

    भागने की अब वैसी उम्र भी नहीं थी साठ के बाद

    ऊपर से दिल की बीमारी अलग से लगी हुई थी

    सिवा गिर जाने के अब कोई

    रास्ता बचा था

    सो गिर पड़े मुश्ताक़ मियाँ

    फिर सोचा जिन्हें इतनी प्यास है उनके ख़ून की

    वे आवें बीच सड़क पर कर लें दो हिस्से

    उनके जिस्म के

    लेकिन दंगाइयों की तो कुछ और ही मंशा थी

    अब जिस्म को लहूलुहान करना काटना बीच से

    नाकाफ़ी था

    अब तो उसे जलाकर ख़ाक भी कर देना था

    अब तक बहुत कुछ जो इसलिए ज़िंदा था

    कि वह इंसानियत का हिस्सा था

    उसे राख ही होना था

    मुश्ताक़ मियाँ ख़ाक हुए

    इंसानियत भी राख हुई

    और वह तलवार जिससे वह चीरे गए

    अब तक सड़क पर नाच रही है

    आग को बुला रही है

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 107)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY