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मुझे ऐसा लगता है आजकल

mujhe aisa lagta hai ajkal

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

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वीरभद्र कार्कीढोली

मुझे ऐसा लगता है आजकल

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    प्रेरणा!

    कभी अलग ढंग से जीने को कहती हो मुझे

    कभी ‘वर्तमान से और ऊँचा उठो!’ कहती हो मुझे

    मैं तुम्हारी प्रेरणा से प्रेरित होकर

    और ऊँचा उठने की

    कोशिश नहीं कर रहा, ऐसा नहीं है।

    मैं भूल सका तुम्हारे इन लफ़्ज़ों को

    सच, अधिक जीने के प्रयास में

    कई बार मरा हूँ / मारा गया है मुझे

    पर तुम बचाने कभी नहीं आई मुझे।

    बहुत ऊँचा उठने के प्रयास में

    कई बार नीचे गिरा हूँ / गिराया गया हूँ

    पर तुम कभी कंधा देने नहीं आईं मुझे।

    तुम तो देख ही रही हो मुझे

    मैं जी रहा हूँ आज, फिर भी

    उठ रहा हूँ, खड़ा भी हूँ।

    इसीलिए, प्रेरणा!

    दीर्घकाल जीने के प्रलोभन में

    मैं फिर मरना नहीं चाहता।

    इससे ऊँचा उठने और उड़ने का ख़्वाब देखकर

    मैं फिर किसी के आगे झुकना नहीं चाहता।

    मैं बार-बार मरते और मरवाते

    दीर्घकाल जीने

    बार-बार गिरते और गिरवाते

    झुकते और झुकवाते

    ऊपर उठना और उड़ना

    मुझे मेरा स्वाभिमान इजाज़त नहीं देता।

    तुम्हें आभास तो होगा ही

    उठने के लिए कैसे कहाँ तक झुकना पड़ता है!

    जीने के लिए कैसे कहाँ तक मरना पड़ता है!!

    नहीं, प्रेरणा नहीं चाहिए अब

    मैं लोगों को आज़मा चुका हूँ

    मैं अपनी ज़िंदगी कई तरह से जीया हूँ।

    और कई तरह से भोग चुका हूँ

    भोग रहा हूँ आज भी

    जिसे तुम देख रही हो, लोग भी देख रहे हैं।

    ऐसा लगता है मुझे—आजकल

    मैं जिस राह से गुज़र रहा हूँ,

    सही गुज़र रहा हूँ।

    मैं जहाँ जिस तरह खड़ा हूँ, सही खड़ा हूँ।

    मैं जैसी भी ज़िंदगी जी रहा हूँ।

    सही जी रहा हूँ।

    अब मुझे

    वह मौज-मस्ती भरी ज़िंदगी/ लोग जी रहे हैं

    और दु:ख-कष्ट जो लोग भोग रहे हैं आज

    मुझे कोई सरोकार नहीं हैं!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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