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प्रभात

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प्रभात

 

अपने ही घर में हिंदी की हैसियत
एक रखैल की-सी हो गई है
अँग्रेज़ी पटरानी बनी बैठी है

अँग्रेज़ी के बच्चे शासकों के बच्चों की तरह
पाले-पोसे जाते हैं
हिंदी के बच्चों की हैसियत
दासीपुत्रों सरीखी है

अँग्रेज़ी के बच्चे ही वास्तविक बच्चों की तरह देखे जाते हैं—
भावी शासकों की तरह
हिंदी के बच्चों को ज़मीनी अनुभवों और योग्यताओं के बावजूद
उनके सामने हमेशा नज़र नीची किए विनम्र बने रहना होता है

हिंदी हाशिए पर धकेल दिए गए अपने बच्चों के साथ
शिविर में रहती है
अँग्रेज़ी राजमहलों में

हिंदी अब थकी-थकी-सी रहती है
उसके अनथक श्रम का कहीं कोई मूल्य नहीं है
उसके बच्चों का भविष्य अंधकार से भरा है

कुछ है जो भीतर ही भीतर खाए जाता है
आते-जाते हाँफने लगी है
भयभीत-सी रहने लगी है

कल की ही बात है
नींद में ऐसे छटपटा रही थी जैसे कोई उसका गला दबा रहा हो
बच्चे ने जगाया :

माँ! माँ! क्या हुआ!

पथरायी आँखों से बच्चे के चेहरे की ओर देखते बोली :

क्या मैं कुछ कह रही थी?

हाँ तुम डर रही थीं!

थकान से निढाल वह फिर से सो गई
सोते-सोते ही बताया :

बड़ा अजीब-सा सपना था
अँग्रेज़ी ने मुझे पानी में धक्का दे दिया
उसे लगा पानी कम है
वह हालाँकि हँसी-मज़ाक़ ही कर रही थी
लेकिन पानी बहुत गहरा था
मैं डूब रही थी
इतने ही में तुमने मुझे जगा दिया
जाओ सो जाओ
अभी बहुत रात है

बुदबुदाते हुए वह सो गई

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रभात
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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