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मृत्यु के लिए नया शब्द

mirtyu ke liye naya shabd

शायक आलोक

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शायक आलोक

मृत्यु के लिए नया शब्द

शायक आलोक

और अधिकशायक आलोक

    सड़कें धूप में पसीने-सी चमकती हैं :

    मैंने श्रम के बारे में सोचा

    सड़क के चमकते खंभे

    जो बता सकते हैं और कितने मील की दूरी पर

    भाषा और पानी अपना रूप बदल लेंगे

    अनुमान के कितने समय में बदल जाएगा

    इधर का आदमी

    उधर के आदमी से

    मैंने आदमियत के बारे में सोचा

    रास्ते की रोशनी के सब मकान उनके थे

    जिन मकानों पर सरकार के इश्तिहार थे

    एक पूरा पहाड़

    पत्थरों की शक्ल में

    पटरियों पर बिखेर दिया गया है

    पहाड़ों को रौंदकर गुज़र रहा है

    पृथ्वी के गर्भ का सारा गर्म लोहा

    मैंने चूल्हे के बारे में सोचा

    किसने हरी की है धरती

    सब धानी सब गेहूँ किसने उगाया है?

    मैंने भूख के बारे में सोचा

    मैं मृत्यु के लिए एक नया शब्द सोच रहा था,

    जब एक श्रमिक अपने घर को लौट रहा था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शायक आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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