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दर्पण-सी हँसी

darpan si hansi

सविता सिंह

अन्य

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सविता सिंह

दर्पण-सी हँसी

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    एक हँसी दर्पण-सी अपने होंठों पर रख ली थी उसने

    जिसमें देवताओं ने देखे अपने दुख

    जिसमें कितने ही तारे उतरे देखने अपने अँधेरे

    एक फूल जिसमें अपना दर्द उड़ेल गया

    एक औरत छोड़ गई जिसमें अपनी नग्नता

    उस हँसी पर बाद में देर तक चाँदनी बरसी

    हवा घंटों उसे पोंछती रही

    बारिश ने उसे धोने की अनेक कोशिशें कीं

    लेकिन वह सभी कुछ जो उसमें संग्रहीत हुआ

    ज्यों का त्यों संचित रहा

    देवता अपनी कुरूपता पर फिर कभी

    दुखी नहीं हुए

    तारे नहीं हुए विचलित अपने सत्य से बाद में कभी

    फूल मुर्झाया नहीं अपनी पीड़ा से उसके बाद

    एक औरत लज्जित नहीं हुई अपनी देह से फिर

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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