Font by Mehr Nastaliq Web

ऊँट

unt

कृष्ण कल्पित

अन्य

अन्य

और अधिककृष्ण कल्पित

    बड़ी मुश्किल से मैं उसे मुहावरे से बाहर लाया

    अब वह किसी भी करवट बैठ सकता है

    जा सकता है किसी भी तरफ़

    उसके लिए ख़ुली है सब दिशाएँ

    पिछले अकाल में कुछ ढीले पड़ गए हैं पुठ्ठे

    लटक आई है खाल लेकिन इतनी नहीं

    कि हम बेवजह शोकाकुल हों

    वह अभी भी खड़ा है इस रूखी-सूखी धरती पर

    एक उम्मीद की तरह

    उसने एक घर को उजड़ने से बचाया है

    अपनी पीठ पर लादी है गृहस्थी

    बच्चों-बूढ़ों और औरतों को

    गाँवों, ढाणियों और बस्तियों को

    ऊँटों ने बचाया है हर बार

    रेत के इस हाँफते मुल्क को

    अभी पार करने है कई अकाल

    बंजर धरती के टुकड़े रेत के पहाड़

    अभी करनी है हमें पानी की खोज

    अभी चलना है कई बरस कई कोस

    यहीं पर लुटे थे

    यहीं पर लुटेंगे सौदागरों के क़ाफ़िले

    यहीं पर टूटेगा उनका दम

    यहीं पर उठेगी काली-पीली आँधी

    फिर दिखाई पड़ेगा ऊँटों का एक झुंड

    एक गाँव से दूसरे गाँव जाता हुआ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बढ़ई का बेटा (पृष्ठ 21)
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए